Category: वचनामृत – अन्य

सत्य

साधु यदि गाय को कसाई से बचाने के लिये झूठ बोलता है, वह सत्य तो नहीं, पर सत्य(अहिंसा)धर्म अवश्य है । मुनि श्री सुधासागर जी

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हीरा / कंकड़

हीरे का उपयोग यदि हीरे जैसा ना करें तो कंकड़ और हीरे में फ़र्क़ क्या रहा ? मनुष्य और जानवर में क्या फ़र्क़ रह गया

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भाव

दोषी को दोषी माना तो द्वेष होगा, दोषी को रोगी मानो, सहानुभूति होगी/भाव सुधरेंगे । क्षु. श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी

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आसत्ति

जो सिर्फ़ आ सकती है, पर आकर जा नहीं सकती । “Attached” से समस्या नहीं है,  “Attachment” से समस्या है । मुनि श्री तरुणसागर जी

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जीवन और मृत्यु

जीवन एक बुलबुला है, किसी का छोटा किसी का बड़ा, मृत्यु, उसमें छेदा गया काँटा है । जो अपने को बड़ा मानता है, वह भी

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ज्ञानी की रुचि

ज्ञानी को विषयों में अरुचि, ऐसे ही जैसे मिठाई खाने के बाद मीठा दूध भी फीका लगता है । क्षु. ध्यानसागर जी

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सुख / शान्ति

व्यथा में सुख की नहीं, शान्ति की तलाश रहती है । सुख की खोज तो अंतहीन है (जैसे ही व्यथा समाप्त हुई, फिर से सुख

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समय

दिन कब बीते हैं… सिर्फ हम बीत जाते हैं । घड़े फूटे भर हों स्वयं रीत जाते हैं…. ऐलक श्री सम्यक्त्वसागर जी

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ऊर्जा

बच्चे खेल-कूद में अपनी ऊर्जा को लगाते हैं, गृहस्थ संतान उत्पत्ति में, साधक, ध्यान की एकाग्रता में । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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मंगल आशीष

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