Category: वचनामृत – अन्य
सफ़लता
निराशा असफ़लता की पहली निशानी है । असफ़लताऐं तो सफ़लता की सीढ़ीयाँ हैं । प्रशंसा को प्रोत्साहन और निंदा को चेतावनी मानने वाले ही सफ़ल
धोखा
विभीषण के राम की शरण में आते समय सलाहकारों ने कहा – वह धोखा दे सकता है । राम – धोखा देना पाप है, खाना
वृद्ध
वो जिनके गुण वृद्ध (अधिक) हों, या गुणों में वृद्धि को प्राप्त हों । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
सर्वश्रेष्ठ
हीरो बनने से पहले ज़ीरो बनना ज़रूरी है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
कर्तापन
यदि भगवान कर्ता होता, (हमारे आज के कर्मों/कर्म फलों का) तो यह संसार बंद ही हो गया होता । मुनि श्री समय सागर जी
आचार / विचार
आचार – धर्म है, विचार – अध्यात्म है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी
नज़रिया
नज़ारे नज़र नहीं दिखाती बल्कि नज़रिया दिखाता है । नज़रिया को ही सच्चा/झूठा दर्शन कहा है । क्षु. ध्यान सागर जी
सुख / दु:ख
पराश्रित सुख से उत्तम स्वाश्रित दुःख है, तभी तो साधु विषय-सुखों का त्याग करके तप के दुःख को अंगीकार करके सुखी रहते हैं। क्षु.श्री ध्यान
पैसे का घमंड
अपनी उम्र और पैसे पर, कभी भी घमंड़ मत करना। क्योंकि जो चीजें गिनी जा सकें, वो यकीनन खत्म हो जाती हैं ! क्षु.श्री ध्यान
परिस्थितिवश पाप
परिस्थिति पाप नहीं कराती, पाप तो मन:स्थिति से होता है। जिस परिस्थिति में रागी, पाप करता है; उसी परिस्थिति में वैरागी पुण्य करता है ।
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