Category: वचनामृत – अन्य
शांति
साधनों से शांति नहीं मिलती, साधना से मिलती है । मुनि श्री विश्रुतसागर जी
कष्ट
कष्ट सहे बिना कोई इष्ट और मिष्ट नहीं बन सकता । मुनि श्री कुंथुसागर जी
धन/धर्म
धार्मिक क्रियाओं के लिये धन चाहिये, धन के लिये धार्मिक क्रियायें । पर स्व-धर्म के लिये धन की जरूरत नहीं है । मुनि श्री विश्रुतसागर
दृष्टि
दूसरों में झाँकना छोड़ो, अपने को आंकना शुरू करो । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म/विज्ञान
धर्म द्वारा सिद्ध किए गए सिद्धांतों/कथनों को ही आज विज्ञान सिद्ध कर रहा है । मुनि श्री विश्रुतसागर जी
उच्चासन
भगवान/गुरू/शास्त्र को ऊँचे आसन पर क्यों बैठाते हैं ? दीपक को ऊँचे आसन पर क्यों रखते हैं ? ताकि प्रकाश अधिक से अधिक स्थान तक
सहनशीलता
परवश में बहुत कुछ सहन करते हैं, स्ववश में कुछ भी नहीं, तो परभव (भविष्य) में बहुत कुछ परवश सहन करना पड़ेगा। मुनि श्री विश्रुतसागर
चक्र
रावण पूरा जीवन चक्र हासिल करने में लगा रहा पर उसके जीवन का अंत उसी चक्र से हुआ । हम सब भी संसार के चक्कर
निंदा
परोक्ष में निंदा से उसका (जिसकी निंदा की जा रही है) बुरा नहीं, निंदा करने वाले का अवश्य, प्रत्यक्ष में निंदा से उसका भला, अपना
भोग/सुख
रावण ने पूरी ज़िंदगी भोग भोगे, राम ने वनवास । रावण को हर साल रामलीला मैदान में जलाया जाता है, राम को मोक्ष सुख हमेशा
Recent Comments