Category: वचनामृत – अन्य

बंधन

सांसारिक बंधन पुराने जूते जैसा होता है – पता ही नहीं लगता कि पैर जूते में फंसा है । पता तब लगता है जब जूता

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मुहूर्त

मुहूर्त तो शादी (फंसने) के लिये देखा जाता है, तलाक (निकलने) के लिये नहीं । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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सक्रियता

जुगनू की चमक, उसके सक्रिय होने पर ही दिखती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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संसार के दु:ख

पं श्री जगमोहनलाल जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी से पूछा – आपको वैराग्य कैसे हुआ ? आचार्य श्री – आप लोगों के चेहरों को

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बड़े

बड़े की पहचान – छोटी छोटी बातों से खुश नहीं, नाराज़ नहीं ।

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लोभ

आवश्यक के प्रति आकर्षण भी लोभ है । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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स्वाभिमान

दिखावा करने वालों के स्वाभिमान नहीं होता । (वे तो दूसरों को ही महत्व देते रहते हैं ) मुनि श्री कुंथुसागर जी

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सुख

संसार में सुख, दर्पण में मुख होता नहीं, दिखता है । साधनों में नहीं साधना से, साध्य को पाने में मिलता है । आर्यिका श्री

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मान

हो कोड़ी के, मान पसेरी के । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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मंगल आशीष

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