धान कूटते देख कर तो पता नहीं लगता कि व्यक्ति धान कूट रहा है या छिलके (क्योंकि ऊपर छिलके ही दिखते हैं)।
धार्मिक क्रियाओं को देख कर हम सामने वाले का पता नहीं कर सकते कि भाव सहित कर रहा है या नहीं।
सो अपनी क्रियाओं पर ही ध्यान दें और भाव सहित करें।

शांतिपथ प्रदर्शक

आत्मभूत = जो अपने स्वभाव में हो/ आत्मा में हो।
स्व–स्वभाव में अचेतन भी रहते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- शंका समाधान)

(फिर हम तो चेतन हैं, हम क्यों नहीं अपने स्वभाव में रह पाते ? दूसरों में हमेशा क्यों उलझे रहते हैं ??)

बैरी को Forget करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि बैरी को दुबारा देखने पर फिर से बैर-भाव Revive हो जाएगा।
सो Forget के साथ Forgive भी ज़रूरी है, वह भी Forever के लिये।
तब क्षमा करते ही वह बैरी रह ही नहीं जाएगा। ज्यादातर गलतियां अपनों से ही होती हैं और वे दुखदायी भी ज्यादा होती हैं। पर अपनों को बैरी बनाकर जी भी तो नहीं सकते।

नीरज जैन – लंदन (चिंतन) 

कर्म को “बेचारा” कहा है।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

(बेचारा ही तो है… लम्बे अरसे तक आत्मा में कैद रहता है बिना किसी कसूर के।
बिडम्बना… हम उस बेचारे के साथ रहते-रहते बेचारे हो जाते हैं)

चिंतन

मार्च’22 में ऑस्कर समारोह अमेरिका में चल रहा था।
प्रसिद्ध हास्य कलाकार क्रिसरौक स्टेज संभाल रहे थे।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का इनाम विलस्मिथ को घोषित हुआ। स्मिथ की पत्नी के सिर के बाल उड़ गये थे।
क्रिस ने पत्नी की तुलना किसी प्रसिद्धि गंजी औरत से कर दी।
स्मिथ ने नाराज़ होकर क्रिस को चांटा मार दिया।
क्रिस ने प्रतिक्रिया नहीं दी। बाद में कहा → मैंने तो आपकी पत्नी की उस महान महिला से तुलना की थी।
स्मिथ को अफसोस हुआ, उसने स्टेज पर जाकर माफ़ी मांगी और कहा → आज मैंने सीख ली कि प्रतिक्रिया तुरंत नहीं देनी चाहिये।

भगवान महावीर मुनि अवस्था में विहार करते हुए एक खंडहर में ध्यान मग्न हो गये। बरसात होने लगी, उनके सिर पर पानी की धार पड़ने लगी। एक व्यक्ति ने देखा, वह दौड़ता हुआ पास के मंदिर में से भक्तों को बुलाने पहुँचा जहाँ बड़ी पूजा का आयोजन हो रहा था। भक्तों ने उसे भगा दिया ताकि उनकी पूजा पूरी हो जाये।
उस व्यक्ति ने आकर महावीर के पैर पकड़ लिये,
हे ! संत आपकी पूजा कब होगी ?
आकाशवाणी हुई → जब ये पत्थर के हो जायेंगे।

ब्र.डॉ.नीलेश भैया

मरण का सूतक 12 दिन का, 13वें दिन पूजादि कर सकते हैं।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

(चौथी-पाँचवीं पीढ़ी को 6 दिन,
छठी-सातवीं को 3 दिन,
आगे सूतक नहीं)

एक समृद्ध व्यक्ति सत्संग में नहीं जाते थे। पत्नी के आग्रह पर एक दिन चले गये, सबने कहा “आइये”, “बैठिये” पर कथा शुरू होते ही सो गये, अंत तक सोते ही रहे। सब चले गये, आखिरी दरी वाले व्यक्ति ने उठाया, कहा “जाइये”।
पत्नी के पूछने पर बताया → 3 शब्दों की कथा थी….. आइये, बैठिये, जाइये।
पत्नी → चलो इन 3 शब्दों को भगवान की कथा मान कर याद रखना।
रात को इन शब्दों को दोहरा रहे थे। चोर घुसा। “आइये, बैठिये, जाइये” सुनकर उसे लगा मुझे पहचान लिया है। पैर पड़ गया।
पत्नी → सच्चे सत्संग से झूठे 3 शब्द ले आये तो चोर शरणागत हो गया। यदि सच्चे शब्द ले आओगे तो चारों चोर (क्रोध, मान, माया, लोभ) शरणागत हो जायेंगे।

(आतिफ – कनाडा)

“क्षमा” शब्द “क्षम्” धातु से बना है। “क्षम” यानी धीर, पर्याप्त, अनुकूल, समर्थ।
क्षमा वही करता है जिसमें क्षमता हो।

(कमल कांत)

(यह भी कह सकते हैं… क्षमता के अनुसार क्षमा धारण करें।
क्षमता को अभ्यास से बढ़ाया भी जा सकता है)

मृत्यु भय किसे ?
जिसको जीवन से जितना मोह/ लगाव होता है, उतना ही उसे मृत्यु से भय लगता है।
जिसको “जीवन (शरीर)” से नहीं बल्कि “जीव” से लगाव होता है उसे भय नहीं होता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930