Posted by admin on December 31,2015 at 4:13 pm
31 दिसम्बर:-
क्या करें 31 दिसम्बर को ?
3+1=4 गतियों में भटक रहे हैं, तो क्या इसके लिये जश्न मनायें !!
या एकत्व भाव का चिंतन करते हुए 1 जनवरी में प्रवेश करें !!!
Posted by admin on December 29, 2015 at 03:12 pm
सल्लेखना :-
मुनि के श्वासोच्छ्वास रोककर मरण करने को सल्लेखना कहेंगे ?
भोजन भोग है, पर श्वासोच्छ्वास भोग नहीं, इसलिये इसका त्याग करके मरण को पंड़ित मरण नहीं कह सकते हैं ।
प्रश्नोत्तर सं. – 2/67
Posted by admin on December 28, 2015 at 03:09 pm
भरतेश वैभव :-
यह प्रमाणिक नहीं है ।
बहुत से प्रसंग आगम विरूद्ध हैं जैसे भरत ने चक्र नहीं चलाया, जबकि आदिपुराण में कहा गया है कि चलाया था ।
बाद में इसके रचयिता रत्नाकर वर्णी ने जैन धर्म ही छोड़ दिया था ।
प्रश्नोत्तर सं. – पे. – ९
Posted by admin on December 26, 2015 at 03:03 pm
अवधिज्ञानी/ऋद्धिधारी :-
पंचम काल के 162 वर्षों तक ऋद्धिधारी मुनि हुए, अंतिम थे सुपार्श्वचंद्र ।
तिलोयपण्णति के अनुसार हर कल्की के बाद एक अवधिज्ञानी होते हैं ।
आचार्य श्री के अनुसार वर्तमान में अवधिज्ञान हो सकता है ।
प्रश्नोत्तर सं. – 2/66
Posted by admin on December 24, 2015 at 02:59 pm
आत्मा अनादि :-
आत्मा कभी तो बनी होगी ?
पर बनते समय, शुद्ध रही होगी, फिर संसार में कैसे रही ?
यदि शुरू से ही कर्मों सहित रही तो आत्मा पहले या कर्म पहले आये ?
मुर्गी पहले या अंड़ा पहले ?
बीज पहले या पेड़ पहले ?
चिंतन
Posted by admin on December 22, 2015 at 10:18 am
वेदनीय / मोहनीय :-
वेदन तो दोनों में,
मोहनीय से वेदन में तीव्रता आ जाती है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 21, 2015 at 10:55 am
ज्ञान / केवलज्ञान :-
सब जीवों की आत्मा में ज्ञान है ।
बनाना है आत्मा को ज्ञान रूप (केवलज्ञान)
Posted by admin on December 19, 2015 at 10:48 am
अकृत्रिम रचना :-
भरत और ऐरावत के आर्यखंड़ों में अकृत्रिम रचना नहीं होतीं ।
क्योंकि यहाँ प्रलय होती है ।
श्री त्रिलोकसार जी गाथा – 596
Posted by admin on December 18, 2015 at 10:13 am
स्वाध्याय / संयम :-
स्वाध्याय में उस समय के लिये मन पाप से बचता है, संयम में मन, वचन, काय को स्थायी तौर से पाप से बचने का अभ्यास हो जाता है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 17, 2015 at 04:06 pm
निश्चय :-
हर जगह निश्चय लगाओगे तो निगोदिया व सिद्ध, णमोकार व गाली, भोजन व विष्ठा भी समान मानने पड़ेंगे ।
Posted by admin on December 15, 2015 at 04:02 pm
अहिंसा महाव्रत :-
कटु शब्द बोलने वाले को रोकना भी नहीं ।
Posted by admin on December 14, 2015 at 04:13 pm
अदयाभाव:-
दो नकारात्मक ( अ+अभाव ) मिलकर एक बड़ा सकारात्मक शब्द बना-“महान दया का भाव”
भगवान से क्षुद्र जीव का भी घात नहीं होता इसीलिये उनके अदयाभाव माना है।
आ.श्री विद्यासागर जी
Posted by admin on December 11, 2015 at 04:13 pm
शुद्ध का अनुभव :-
आचार्य श्री – सिद्ध बने बिना शुद्ध का अनुभव कैसे हो सकता है ।
दूध पीने वाले को घी का अनुभव हो सकता है ?
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 10, 2015 at 04:09 pm
पंथ :-
पंथ कोई श्रेष्ठ नहीं, पथ श्रेष्ठ है ।
(पंथ की “प” पर बिंदी/टोपी मान का प्रतीक)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Posted by admin on December 08, 2015 at 02:15 pm
श्रुत पंचमी :-
अलौकिक मां का जन्मदिवस ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 07, 2015 at 02:12 pm
स्वाध्याय :-
आचार्यों के शास्त्र पढ़ने से आचार्यों/भगवान के संस्कार बने रहते हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 05, 2015 at 02:09 pm
गोत्र :-
सोने/चांदि के बर्तन को चमकाओ तो चमचमा जाते हैं, लोहे/मिट्टी के ?
चिंतन
Posted by admin on December 04, 2015 at 02:07 pm
मंदिर का माली :-
निर्माल्य के दोष से बचने के लिये, माली का वेतन भक्त Contribute करें ।
Posted by admin on December 03, 2015 at 02:05 pm
व्यवहार / निश्चय :-
दोनों साथ साथ भी ।
जैसे दो पैरों से चलना,
एक पैर चलता है, दूसरा सहारा देता है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on December 01, 2015 at 5:21 pm
गुरु / शास्त्र :-
श्री रयणसार गाथा 9 में गुरु को पहले लिया गया है ।
शास्त्रों की रचना करने ,पहले गुरु ही आयेंगे न !
मुनि श्री कुंथुसागर जी