एक ही पेय पीकर एक को लगा “काफी”, दूसरे को “फीका”।
ऐसे कुछ को जीवन भी “काफी” लगता है, अन्यों को “फीका”।
फीके की परिभाषा है → इच्छित से कम मिठास। जैसे अम्बानी को फ़रारी फीकी लगती है।
ब्र. (डॉ.) नीलेश भैया
दूसरों के प्राणों की रक्षा से पहले अपने प्राणों का सम्मान करें।
भगवान की मूर्ति भी प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूज्य बनतीं हैं।
हम पूज्यता चाहते हैं तो अपने प्राणों को प्रतिष्ठित करें।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
ये तन तेरा कोयला, धो-धो काला होय।
तप अग्नि में गर जले, चाँदी-चाँदी होय।।
घड़ा अग्नि में तप कर ही पानी को शीतलता प्रदान कर पाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
चार प्रकार के दान बताए गए। भूमि-दान कौन से दान में आएगा ?
उस भूमि में मंदिर, धर्मशाला या संत भवन बनेगा तो आवास-दान हो गया।
यदि स्कूल बनेगा तो ज्ञान-दान हुआ।
उस में जो भी निर्माण कार्य होगा उससे कितने लोगों की रोजी-रोटी चलेगी, आहार-दान हो गया।
और अस्पताल या मंदिर बना, दोनों से ही इस जन्म के और जन्म-जन्मान्तरों के रोगों का विनाश होगा क्योंकि सबसे बड़ा रोग तो बार-बार जन्म लेना, बुढ़ापा तथा मृत्यु का ही तो है, सो औषधि-दान हुआ।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 26 फ़रवरी)
आचरण स्थायी गुणों से ही तय होता है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 26 फ़रवरी)
श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था … अहिंसा का उपदेश तो अन्य मतों में भी है पर जैन धर्म में इसका आग्रह पूर्वक पालन करने को कहा गया है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 26 फ़रवरी)
एक घर से बहू लाये, दूसरे घर में बेटी दी। लगाव/ खिंचाव किधर ज्यादा होगा ?
बेटी की ओर।
कारण ?
जहां दिया जाता है उधर ज्यादा लगाव होता है/ आकर्षण होता है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 26 फ़रवरी)
(रेनू-नयाबाजार ग्वालियर)
सेवा ग्लानि और गाली को जीतकर ही की जा सकती है। घावादि से ग्लानि नहीं होनी चाहिए। सेवा कराने वाले को मरहम पट्टी कराते समय कष्ट भी होगा। हो सकता है लात भी खानी पड़े। गाली या स्तुति गा-ली।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 26 फ़रवरी)
धर्म में आस्था तो प्रायः देखी जाती है पर निष्ठा* की बहुत कमी है।
इसीलिये जीवन में धर्म दिखता नहीं है।
*स्थिरता/ समर्पण
मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
हम सेवा का क्या भाव(मोल) लगा सकते हैं ! सेवक को क्या वेतन दोगे, जिसने अपने को हमारे लिए बे-तन कर दिया है। अतिभाररोपण से तो ज़रूर बचें, इसमें ज्यादा उम्मीद का भार भी आता है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 26 फ़रवरी)
अंग्रेजी भाषा का भूत जापान में भी आया था। पर उन्होंने अनुसंधान करके पाया कि पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक अंग्रेजी पढ़ाने के वजाय 12वीं के बाद अगर पढ़ाई जाए, जब मस्तिष्क विकसित हो जाता है तब वही काम 3 महीने में किया जा सकता है। पहली सालों में अपनी मातृभाषा के प्रति भावनायें प्रबल भी हो जाती हैं और अंग्रेजी भाषा भी 3 महीने में सीख ली जाती है।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 25 फ़रवरी)
यदि हम हिंदी राष्ट्रीय भाषा को उन राज्यों में जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती, हिंदी की स्वीकार्यता चाहते हैं तो उनकी भाषा के भी कुछ-कुछ शब्द हिंदी बोलने वाले नागरिकों को सीखने चाहिए।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 25 फ़रवरी)
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