जिससे मोह किया, वह आपको छोड़ेगा।
मोह छोड़ा, तो आप उन्हें छोड़ेंगे।

मुनि श्री मंगलसागर जी

साधु और गृहस्थ दोनों संसार में, पर संसार में साधु तथा गृहस्थ में संसार।
गृहस्थ संसार का स्वाद जानता (उसमें आनंद लेता) है, साधु संसार का स्वरूप जानता है, उसके लिये संसार में रहना जरूरी है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

गांधीनगर अक्षरधाम में पहली मूर्ति एक व्यक्ति की, अधबनी मूर्ति में पत्थर में से छैनी/हथोड़े से अपने आप की सुंदर सी मूर्ति बना रहा है।

हम सब भी तो अपने-अपने बाहर को ही तो तराश रहे हैं, अंदर में कभी छैनी लगायी ?

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

चोरी* करने की अनुकूलता/ कर पाना/ सफलता मिलना पुण्योदय से।
चोरी करने में पापबंध।
फल ?
पापोदय जैसे असाध्य रोग/ दुर्गति/ गरीबी आदि।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी

* ऐसे ही अन्य पाप क्रियाओं में लगाना।

मैं आत्मा हूँ
औरों से आत्मीयता
मेरी श्वास है।
(जब तक संसार में हूँ)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

तुलसी कृत रामायण में राम को विनम्र कहा, लक्ष्मण को नम्र।
नम्रता दूसरों से/ बाहर की स्थिति से संचालित होती है। विनम्रता स्वयं भीतर से तैयार होती है।
उत्साह के लिये आवेग भी ज़रूरी है पर उसमें सौम्यता बनी रहे, उग्रता न उतरे।

पं.विजय शंकर मेहता (अंजली)

मोबाइल की बैटरी 8% रह गयी। चार्जिंग पर लगाया फिर भी चार्जिंग घटती जा रही थी। 1% पर पहुँचकर बढ़ना शुरू हुई।
स्टॉक के पुण्य जब कम हो जाते हैं तब पुण्य की क्रियायें/ पुरुषार्थ काम करते हुए नहीं नज़र आते हैं।
हाँ ! पुरुषार्थ लगातार सही दिशा में करते रहने से स्थिति सुधरने लगती हैं।

चिंतन

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

October 2024
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031