Posted by admin on February 28, 2015 at 12:55 PM ·
अनुबंध और व्रत :-
देवायु बंध को छोड़कर बाकी तीनों के बंध होने पर देश/सकल व्रत तो नहीं ले सकते,
पर नियम ले सकते हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 26, 2015 at 00:24 AM ·
दु:खी :-
एक अपेक्षा से (बाहर से )दु:खी सम्यग्दृष्टि ही,( बाहर से) सुखी मिथ्यादृष्टि ।
अंतरंग में उल्टा।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 24, 2015 at 09:24 AM ·
वर्गणायें :-
अकर्म वर्गणायें रागद्वेष तथा योग से कर्म वर्गणाओं में प्रवेश कर जाती हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 21, 2015 at 09:19 AM ·
आत्मा :-
लोहे में जब अग्नि प्रवेश करती है तो लोहे की Quality बदल जाती है ।
ऐसे ही आत्मा में जब कर्म प्रवेश कर जाते हैं तो आत्मा शुद्ध से अशुद्ध हो जाती है ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
Posted by admin on February 19, 2015 at 10:09 AM ·
सभ्य/व्रति :-
आचार्य श्री – सभ्य गाली ही नहीं देते, पर बोलते भी बहुत कम हैं ।
व्रति अभक्ष्य ही नहीं खाते, पर भक्ष्य भी बहुत कम खाते हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 17, 2015 at 10:06 AM ·
मोक्षमार्ग :-
मोक्षमार्ग में रूचि – सम्यग्दर्शन
मोक्षमार्ग में प्रवृति – सम्यक्चारित्र
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Posted by admin on February 14, 2015 at 00:46 AM ·
उत्कृष्ट त्याग :-
आचार्य श्री – एक दो बार लेने के बाद त्याग करना, जब कि देने वाला आग्रह कर रहा है और आपको वह चीज अच्छी भी लग रही हो ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 12, 2015 at 10:46 AM ·
दिगम्बरत्व :-
IAS के लिये Graduate होना आवश्यक है ।
उसी तरह शुद्धोपयोग/मोक्ष के लिये दिगम्बरत्व Graduation जैसा है ।
चिंतन
Posted by admin on February 10, 2015 at 10:32 AM ·
वैराग्य :-
वैराग्य पूजापाठ, जाप से नहीं होता ।
विपाक, उपाय विचय से होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Posted by admin on February 07, 2015 at 12:00 AM ·
प्रणाम :-
नवदीक्षित मुनियों को पहले नमोस्तु आचार्य श्री खुद करते हैं ।
सही तो है – मूर्ति बनाने के बाद पहला प्रणाम मूर्तिकार खुद ही करता है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 05, 2015 at 02:41 PM ·
उपवासी से आहार :-
क्या उपवासी से आहार ले सकते हैं ?
आचार्य श्री – यदि कोई और समझदार व्यक्ति न हो तो ले सकते हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on February 03, 2015 at 02:38 PM ·
अभिषेक :-
भगवान का जन्माभिषेक सौधर्म/इशान इन्द्र करते हैं ।
कलश अन्य देव लाते हैं, देवियाँ नृत्य तथा मंगल चिन्ह लेकर अनुमोदना करतीं हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Posted by admin on February 01, 2015 at 02:31 PM ·
प्रासुक :-
जिससे प्राण निकल जायें ।
आचार्य श्री – जिससे पाप निकल जायें ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी