Posted by admin on September 29, 2015 at 12:47 pm

निश्चय सम्यग्दर्शन :-

अनुभूति पूर्वक सम्यग्दर्शन ।

Posted by admin on September 28, 2015 at 12:45 pm

बालब्रम्हचारी साधक :-

कोरी सिलेट पर अक्षर अधिक स्पष्ट उभरते हैं ।

Posted by admin on September 26, 2015 at 12:43 pm

उदय :-

2 तरह का होता है :

Posted by admin on September 25, 2015 at 12:38 pm

उच्च गोत्र :-

इसे प्राप्त करने के लिये उच्च कुलाचार का पालन करना होता है ।

Posted by admin on September 24, 2015 at 12:02 pm

सामायिक :-

सामायिक के लिये समता की आवश्यकता होती है,
समय की नहीं ।

Posted by admin on September 22, 2015 at 08:55 am

निर्माल्य :

शास्त्रानुसार, निर्माल्य सामग्री को पशु/पक्षियों को खिला देनी चाहिये ।
गरीबों को भी दे सकते हैं, उनको दोष भी नहीं लगेगा, आप उपयोग करोगे तो दोष लगेगा ।
क्योंकि आपने छोड़ने के भाव से दिया था; फिर लिया, तो दोष ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on September 21, 2015 at 08:53 am

सूतक/गंधोदक :-

सूतक में दूसरे से गंधोदक ले सकते हैं ।

Posted by admin on September 19, 2015 at 08:42 am

नवरात्रि/विजयदशमी :-

5 पाप + 4 कषाय की कालिमा को नवरात्रि तथा उन पर विजय को विजयदशमी मानें ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on September 18, 2015 at 08:40 am

श्रमण :-

जो आत्मकल्याण के लिये श्रम करे ।

मुनि श्री चिन्मयसागर जी

Posted by admin on September 17, 2015 at 09:48 pm

पर्युषण महापर्व :-

P= पर्युषण महापर्व है आया,
A= अनुष्ठान आत्मशुद्धि का..
R= राग द्वेष विसर्जन का..
Y= यम-नियम द्वारा
U= उर्ध्वआरोहण हो
S= सुक्ष्म स्थूल मन चेतन का..
H= हृदय हो परिवर्तन
A= अविरत अक्षुण्ण ,
N= नव तत्वों और सूत्रों का हो वाचन।

M=महामंत्र नवकार का..
A= अभ्यर्थन हो, आराधन हो,
H= हो नवसवेरा
A= आत्मसाधना, आत्मसंयम का..
P= प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान,
A= आगम वाचन, अनुसन्धान,
R= रोग शोक पर करना है प्रहार,
V= विविध कर्म निर्जरा का यह त्यौहार….
पर्वाधिराज पर्युषण की शुभ कामनायें।

Posted by admin on September 15, 2015 at 08:23 am

अनंत सिद्ध :-

सिद्धों को तो अनंत कहा क्योंकि वे सिद्धालय में विराजमान होते रहते हैं, पर अरिहंत तो वर्तमान या ३ चौबीसी में, बाकी तो सिद्ध बनते रहते हैं ।

चिंतन

Posted by admin on September 14, 2015 at 12:00 pm

क्षमा :-

प्रायश्चित/क्षमा से कर्मों का अनुभाग क्षीण/कम हो जाता है ।

Posted by admin on September 12, 2015 at 11:58 am

निमित्त/कर्म :-

कुँए (सत्ता) में पानी (कर्मों) का भंड़ार नहीं होगा तो रस्सी/बाल्टी (निमित्त), पानी को बाहर कैसे ला पायेंगे !!

Posted by admin on September 11, 2015 at 12:12 am

संज्ञाऐं :-

संज्ञाऐं जीवन के रक्षण के लिये हैं, आनंद लेने के लिये नहीं ।

चिंतन

Posted by admin on September 10, 2015 at 12:08 pm

मिथ्यादृष्टि का ज्ञान :-

इनका तत्व ज्ञान अवग्रह रूप ही रह जाता है ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on September 08, 2015 at 2:38 pm

पर से छुटकारा :-

अपने में इतने लीन हो जाओ,

कि “पर” की ओर ध्यान ही ना जाये ।

(ब्र. संजय)

Posted by admin on September 07, 2015 at 2:36 pm

परमात्मा :-

परमात्मा बनने के लिये,

पर-आत्मा से सम्बंध तोड़ना होगा ।

चिंतन

Posted by admin on September 05, 2015 at 11:34 am

अशरण भावना :-

तीव्र पाप के उदय में ,
अशरण भावना बहुत कार्यकारी होती है ।

Posted by admin on September 04, 2015 at 01:18 pm

मुनियों की प्रतिमा :-

वर्तमान के मुनियों की नहीं ।
हूबहू ना बनायें, प्रतीकात्मक बनायें ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on September 03, 2015 at 11:54 am

जिनवाणी :-

सरस्वती, भारती, शारदा आदि जिनवाणी के पर्यायवाची हैं ।
पर कोई देवी रूप नहीं हैं ।
देवी तो असंयम/सराग रूप ही है, जो पूज्य नहीं हो सकती।

Posted by admin on September 01, 2015 at 11:50 am

मानुषोत्तर पर्वत :-

इस पर चढ़ नहीं सकते हैं तथा इनकी गुफाओं में भी नहीं जा सकते हैं ।

पं रतनलाल बैनाड़ा जी

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