Posted by admin on April 29, 2016 at 05:25 pm

धर्म और विज्ञान :-

विज्ञान प्रयोगों से, जो बदलता रहता है ।

Posted by admin on April 28, 2016 at 05:13 pm

जन्म दिवस :-

ज़्यादातर तीर्थंकरों का तप/ मोक्ष जन्म दिवस पर हुआ।
अपन भी अपने जन्म दिवस को ऐसे ही सार्थक बनाऐं।

Posted by admin on April 27, 2016 at 02:11 pm

अदरक / आलू :-

अदरक साबुत ही सूखकर काष्ठ/सौंठ बन जाता है,
साबुत आलू सूखता नहीं, सड़ जाता है ।

Posted by admin on April 26, 2016 at 02:10 pm

मति / श्रुत :-

सब जीवों को दोनों क्यों ?

मति ज्ञान की उपयोगिता, श्रुत ज्ञान से ही होती है ।

बाई जी

Posted by admin on April 25, 2016 at 02:08 pm

शास्त्र रचना :-

आचार्यों ने शास्त्र रचना अवधिज्ञान से की होती तो गलती होने की संभावना नहीं रहती ?

चिंतन

Posted by admin on April 22, 2016 at 01:57 pm

अंजुली में भोजन :-

मुनि महाराज के अंजुली में भोजन करने के कारण

Posted by admin on April 21, 2016 at 01:29 am

सामायिक :-

अशुभ से हटकर शुभ में स्थिरता का नाम सामायिक है ।

Posted by admin on April 20, 2016 at 01:28 am

चैत्य :-

जो चित्त पर चित्रित हो जाये, जिनबिम्ब ।

Posted by admin on April 19, 2016 at 01:27 am

कर्म सिद्धांत :-

कर्मों के भेद और उनके फल का विवरण, जैन आगमों में ही मिलता है ।

पाठशाला

Posted by admin on April 18, 2016 at 01:26 am

जाति और धर्म :-

जाति शरीरजन्य,
धर्म आत्माजन्य ।

Posted by admin on April 17, 2016 at 01:30 am

शास्त्रों का अभिवादन :-

शास्त्रों को भी नमोस्तु कहना चाहिए ।

Posted by admin on April 16, 2016 at 11:26 pm

आयुबंध :-

ढ़लान आने का मतलब, आगे Valley आने वाली है ।

Posted by admin on April 15, 2016 at 01:30 pm

आत्मघात :-

धर्म/शील की रक्षा के लिये किया गया आत्मघात तिर्यंच/नरक बंध का कारण नहीं है ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on April 14, 2016 at 03:11 pm

पूजा और आचरण :-

24 तीर्थंकरों की पूजा से भी ज़्यादा लाभ, 24 घंटे समता भाव/ सम्यक् भाव रखने से होता है ।

Posted by admin on April 13, 2016 at 03:08 pm

कर्मबंध और फल :-

कर्म बंध में सब परतंत्र हैं,
कर्म फल में स्वतंत्र ।
कर्म भोगने में लिप्त नहीं हुये तो कर्म बंध भी बंद हो जायेगा ।

Posted by admin on April 12, 2016 at 03:02 pm

विधान :-

घर/फैक्टरी में भी विधान-मंड़ल कर सकते हैं पर शुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिये ।

Posted by admin on April 11, 2016 at 11:20 am

विधवा :-

विधवा यदि ब्रह्मचर्य व्रत ले ले तो उन्हें ब्रह्मचारिणी जैसा सम्मान देना चाहिये ।

 मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on April 08, 2016 at 11:13 am

अभयदान :-

अभयदान देने वाले के अकालमरण की सम्भावनाऐं कम हो जाती हैं ।

Posted by admin on April 07, 2016 at 11:10 am

यश :-

दूसरों का अनादर, कटू/कठोर शब्द बोलने वालों को अयश नामकर्म बंधता है ।

– भगवती आराधना

Posted by admin on April 06, 2016 at 11:08 am

रागी की पूजा :-

सीता जी, सुदर्शन सेठ आदि ने वीतरागी की पूजा की, हालाँकि सहायता रागी देवों ने की ।

Posted by admin on April 05, 2016 at 12:36 pm

सुख / दु:ख :-

अंतरमुखी सदा सुखी,
बहुरमुखी बहुत दुखी ।

Posted by admin on April 04, 2016 at 12:34 pm

आत्मा की शुद्धता :-

आत्मा को शुद्ध तब मानो जब अशुद्ध भाव आयें
जैसे बच्चों को गलती करते समय समझाते हैं ।

हर समय शुद्ध मानते रहे तो शुद्ध करने के भाव ही नहीं आयेंगे ।

Posted by admin on April 01, 2016 at 03:29 pm

मुमुक्षु :-

छोड़ने का इच्छुक ।

मुनि श्री धवलसागर जी