Posted by admin on August 31, 2016 at 11:41 AM·
भाषा :-
महाभाषाओं में प्राकृत, संस्कृत आती हैं, हिंदी लघुभाषा में ।
Posted by admin on August 29, 2016 at 10:28 AM·
कायोत्सर्ग :-
हर क्रिया के बाद कायोत्सर्ग क्यों ?
हर क्रिया में दोष तो लगता है, उसके निवारण हेतु ।
हर क्रिया के लाभ को Absorb करने के लिये जैसे योगा के बाद शवासन ।
Posted by admin on August 27, 2016 at 08:12 AM·
अनेकांत :-
शास्त्रों में कई विषयों पर आचार्यों के अलग अलग मत हैं पर मौलिक सिद्धांतों पर उनके मतभेद नहीं हैं, जैसे 7 तत्व/ 9 पदार्थ आदि ।
चिंतन
Posted by admin on August 26, 2016 at 09:42 AM·
आदिनाथ भगवान :-
आपने तीनों क्षेत्रों का उपदेश दिया –
निर्वाह : षट् आवश्यक
निर्माण : जीवन में वर्ण परम्परा की स्थापना
निर्वाण : मोक्षमार्ग ।
Posted by admin on August 25, 2016 at 11:40 AM·
एक देशव्रत :-
12 शीलव्रतों में से श्रावक एक त्रस हिंसा का ही त्यागी हो सकता है, इसीलिये उसे “एक देशव्रती” कहा जाता होगा ।
चिंतन
Posted by admin on August 24, 2016 at 10:25 AM·
भेदविज्ञान :-
इस पर श्रद्धा तो चौथे गुणस्थान में होने लगती है, पर अनुभूति, वीतरागता की स्थिति में ही आती है ।
Posted by admin on August 22, 2016 at 09:05 AM·
ऋशिमंडल यंत्र :-
ऋशियों का समूह जिस यंत्र पर अंकित हो ।
पर उस पर रागियों के चित्र भी होते हैं, इसलिये मान्य नहीं हैं ।
Posted by admin on August 20, 2016 at 11:35 AM·
व्यसन / पाप :-
पाप संस्कार हैं, सब जीवों में अनादि से रहते हैं ।
व्यसन Adopt किये जाते हैं, पाप के माध्यम से और लत में परिवर्तित हो जाते हैं ।
Posted by admin on August 19, 2016 at 09:40 AM·
अवगाहना :-
आगम में शरीर के लिये “अवगाहना”” शब्द का प्रयोग ऊँचाई के लिये किया गया है (क्षेत्रफल के लिये नहीं) ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी
Posted by admin on August 18, 2016 at 12:13 AM·
वर्ण :-
विदेह क्षेत्र में सिर्फ़ 3 वर्ण ही होते हैं ।
(जो आदिनाथ भगवान ने शुरू किये थे, ब्राह्मण नहीं)
पं. रतनलाल बैनाडा जी
Posted by admin on August 17, 2016 at 09:35 AM·
ज्ञान :-
श्रुत का ज्ञान करते करते, ऐसी स्थिति आती है जब ऐसा ज्ञान प्रकट हो जाता है जिसमें दोनों श्रुत (शास्त्र, कान) की सहायता की ज़रूरत नहीं पड़ती है (केवलज्ञान) ।
चिंतन
Posted by admin on August 15, 2016 at 09:25 AM·
प्रतिमाओं की संख्या :-
कृत्रिम चैत्यालयों में Odd No. रखते हैं जबकि अकृत्रिम में Even No. (108) ?
शायद यह कारण हो कृत्रिम में बढ़ाने की भावना, अकृत्रिम में संभावना ही नहीं ।
Posted by admin on August 13, 2016 at 11:55 AM·
मूर्तियों की एक सी शकलें :-
मूर्तियों की एक सी शकलें क्यों ?
1. सर्वोत्तम अणुओं से सबके शरीर बनते हैं ।
2. ज्योति आज जले या हजारों वर्ष पहले, ज्योति एक सी ।
Posted by admin on August 12, 2016 at 10:35 AM·
प्रशमता :-
सहजता, शांतता, सात्वता, सरलता से ही प्रशमता आती है ।
Posted by admin on August 11, 2016 at 10:30 AM·
परघात :-
इसको पुण्यप्रकृति इसलिये कहा है क्योंकि इसके उदय में पर के घात को सहने की शक्ति आ जाती है ।
तत्त्वार्थसूत्र – P 259
Posted by admin on August 10, 2016 at 12:59 AM·
स्वर्ग से :-
1, 2 से स्थावर भी बन सकते हैं ।
12 तक के तिर्यंच,
13 के आगे के मनुष्य ही बनते हैं ।
पाठशाला
Posted by admin on August 08, 2016 at 12:26 AM·
अनेकांत :-
अनेकांत – पूर्ण है, इसलिये आकर्षित करता है ;
एकांत – अधूरा, आकर्षित नहीं करता है ।
(जैसे एक आँख, पैर या हाथ का इनसान आकर्शित नहीं करता । वैसे ही जितना केवलज्ञान आकर्शित करता है उतना कोई और ज्ञान नहीं करता, क्योंकि केवलज्ञान पूर्ण ज्ञान है) ।
Posted by admin on August 06, 2016 at 12:24 AM·
निधत्ति / निकाचित :-
ये कर्म भगवान के दर्शन से ही नहीं, उनके नाम से भी कटते हैं ।
Posted by admin on August 05, 2016 at 10:29 AM·
मैथुन :-
दिवा मैथुन में दोष अधिक क्यों ?
दोनों (दिवा, रात्रि) में हिंसा समान होती है, पर दिवा में लिप्तता ज़्यादा होने से असंयम ज़्यादा ।
पाठशाला
Posted by admin on August 04, 2016 at 12:57 AM·
तीर्थंकर को पहला आहार :-
तीर्थंकर को पहला आहार देने वाले या तो मोक्ष जाते हैं (उसी भव या तीसरे भव से), या स्वर्ग ।
श्री हरिवंश पुराण – 702
Posted by admin on August 03, 2016 at 09:30 AM·
जन्माभिषेक :-
इतने बड़े बड़े 1008 कलशों से अभिषेक करने का कारण गंधोदक है, इतना गंधोदक भी देवताओं को 2,2 बूँद ही मिलता है ।
Posted by admin on August 01, 2016 at 11:54 PM·
मन:पर्यय :-
मन:पर्यय ज्ञानी अपने मन के अचिंतित विषयों को भी जानेगा जैसे अवधिज्ञानी अपने पिछले/अगले भवों को जानता है ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी