Posted by admin on December 31, 2016 at 00:05 AM·

तिर्यंचों के व्रत :-

तिर्यंचों के व्रत तो होते हैं पर प्रतिमाऐं नहीं मानी जाती, क्योंकि वे विधि पूर्वक प्रतिमाओं का पालन नहीं कर पाते ।

पाठशाला

Posted by admin on December 29, 2016 at 01:45 AM·

कषाय :-

मंद कषाय से पुण्य, तीव्र से पाप लहता है,
जैसे मं अग्नि से दूध में मलाई/घी पड़ती है, तीव्र से उबाल आकर बर्बाद हो जाता है ।

Posted by admin on December 28, 2016 at 02:00 AM·

प्रायश्चित :-

नियमों के प्रायश्चित स्वयं, भगवान के समक्ष ले सकते हैं,
पर यम का गुरू के सानिध्य में ।

Posted by admin on December 27, 2016 at 09:00 AM·

द्रव्य और भाव :-

द्रव्य और भाव पर क्षेत्र, काल और भव का असर पड़ता है ।

चिंतन

Posted by admin on December 26, 2016 at 11:25 AM·

भगवानों का यश :-

भगवानों के कर्मों के उदय काल समाप्त होने पर, भक्तों का स्मृति-काल शुरू होता है ।

Posted by admin on December 24, 2016 at 00:35 AM·

दीक्षा :-

दीक्षा के समय माता-पिता से अनुमति ली जाती है ।
यदि माता-पिता उपस्थित नहीं हों तब धर्म माता-पिता बनाने चाहिये ।

Posted by admin on December 22, 2016 at 02:40 PM·

अनर्थदंड़ व्रत :-

दिग्व्रत के अंतरगत ही, क्योंकि सीमा के बाहर तो जाने का तो प्रश्न ही नहीं है ।

पाठशाला

Posted by admin on December 21, 2016 at 02:35 PM·

आहार-दान :-

मुनियों को आहार-दान कराना यानि मुनियों का पालन कर रहे हो ।
आचार्य मुनि पद देते हैं, श्रावक मुनि पद की रक्षा करते हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

Posted by admin on December 20, 2016 at 02:50 AM·

विनय मिथ्यात्व :-

अंधेर नगरी, चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा ।
विवेक/विचारहीन ।

Posted by admin on December 19, 2016 at 02:40 PM·

पूजा :-

पूजा तो द्रव्य की ही होती है ।
चाहे वह मुनि मुद्रा हो या भगवान की मूर्ति,
अरिहंत भगवान के भी शरीर की पूजा होती है (आज्ञाविचय से केवलज्ञान मानते हैं ) ।

Posted by admin on December 17, 2016 at 02:25 PM·

सोच/कर्मबंध :-

सोच से आत्मा में स्पंदन होता है ।
स्पंदन -ve/+ve होने से कर्म भी पाप/पुण्य रूप ।
तो मोह/भय वश अपनों का बुरा ना हो जाये, यह सोचते रहे तो पाप बंध ही होगा और जो सोच रहे हो वैसा ही होने की संभावना बढ़ जायेगी ।

Posted by admin on December 15, 2016 at 04:10 PM·

सम्यग्दर्शन :-

सम्यग्दर्शन बीज है ।
इससे ही सम्यग्ज्ञान/सम्यकचारित्र की उत्पत्ति/स्थिति/वृद्धि तथा फल मिलता है ।

रत्नकरंड़ श्रावकाचार

Posted by admin on December 14, 2016 at 04:37 PM·

अनेकांत / स्याद्वाद :-

अनेकांत – खुद के लिये / खुद को संवारने के लिये
स्याद्वाद – दूसरों के लिये / दूसरों को संवारने के लिये

Posted by admin on December 13, 2016 at 03:10 PM·

संलेखना :-

घर में रहकर संलेखना का अभ्यास तो हो सकता है, संलेखना नहीं ।

Posted by admin on December 12, 2016 at 03:06 PM·

कोटि / सिद्ध शिला :-

तारंगा जी में कोटिशिला है (पर जो लक्ष्मण ने उठायी थी, वह नहीं),
इसे सिद्धशिला भी कहते हैं(पर जिसके ऊपर सिध्दालय है,वह नहीं), क्योंकि इस पर तपस्या करके बहुत से मुनि सिद्ध बने थे ।

पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on December 10, 2016 at 03:00 PM·

सूतक-पातक :-

सूतक 10 दिन का , चौथी पीढ़ी में 6 दिन तथा
5 और 6 में 4 दिन का रह जाता है ।
पातक में भी 12 दिन घटकर, 6 और 4 दिन ही रह जाते हैं ।

पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on December 08, 2016 at 00:30 AM·

तीर्थंकर :-

2 तथा 3 कल्याणकों वालों के खून का रंग जीवनपर्यंत लाल ही रहता है ।

5 कल्याणक वालों के लाल की व्यवस्था नहीं होती ।

पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on December 07, 2016 at 01:30 PM·

दिग्व्रत :-

श्रावक अवस्था में ली गयी सीमा, मुनि बनने के बाद मानी जायेगी ?

नहीं, दिग्व्रत का नियम लिया था हिंसा और आरंभ को कम करने के लिये ।
मुनि बन गये तो हिंसा समाप्त ही हो गयी ।

पाठशाला

Posted by admin on December 06, 2016 at 01:25 PM·

मरण और शरीर :-

मरण के समय कर्मवर्गणाऐं तो साथ जाती हैं पर शरीर रह जाता है, जबकि दोनों ही पुदगल हैं ?

यात्रा में Unused चीजें साथ ले जाते हैं, use की खाली बोतलें भी जाती हैं ।

Posted by admin on December 05, 2016 at 11:20 AM·

सिद्धक्षेत्र :-

रिहाइश क्यों नहीं ??
सिद्धक्षेत्र में गृहस्थी के पापों से ड़रते होंगे (तथा वहाँ पाप करने वालों का पतन हो जाता होगा)
पर सिद्धक्षेत्र की सुरक्षा के लिये भगवान से क्षमा मांगकर सुरक्षा के उद्देश्य से बसें ।

Posted by admin on December 03, 2016 at 11:40 AM·

सोला :-

शोले से जैसे वस्तु पवित्र हो जाती है, सोला ऐसी पवित्रता का प्रतीक है ।
2)शोध ।
3)नवधा भक्ति आदि सोलह चीजों से बना सोला ।
Posted by admin on December 01, 2016 at 11:25 AM·

चौका :-

द्रव्य = क्या*
क्षेत्र = कहाँ
काल = कब**
भाव = कैसे

इन चार का ध्यान रखा जाये, वह चौका होता है ।

* खाना
** दिन में