Posted by admin on February 29, 2016 at 01:57 pm

देवदर्शन :-

इससे दो लाभ और भी हैं –
1. गुरुओं का सानिध्य मिलता है ।
2. समाज धर्मात्मा मानकर इज्जत देती है ।

श्री रिंकू – शिवपुरी

Posted by admin on February 27, 2016 at 01:52 pm

आइरियाणं :-

आइरियाणं – ये सही है ।
“र” पर बड़ी “री” अशुद्ध (व्याकरण से) ।
“इ” की जगह “य” से स्वर/व्यंजन में अंतर आ जाता है, हालाँकि अर्थ तीनों का सही है ।

Posted by admin on February 26, 2016 at 01:56 pm

गुरुत्वाकर्षण :-

सिद्ध नीचे नहीं आते क्योंकि आकर्षण का अभाव हो गया है ।

आचार्य अकलंकदेव

(गुरुत्वाकर्षण का Matter पर ही प्रभाव होता है – कर्म वर्गणाऐं समाप्त हो गयीं )

Posted by admin on February 25, 2016 at 01:47 pm

सिद्ध :-

सिद्ध वहाँ Bore नहीं होते ?
जो Bore होते हैं, वे सिद्ध नहीं होते हैं ।

7Posted by admin on February 24, 2016 at 10:40 am

दिगम्बरत्व:-

पत्थर को भगवान मानकर पूजा जाता है,
मुनि के दिगम्बर भेष को देखकर आहार नहीं करा सकते ?
पर गुरु बनाते समय/शिक्षा लेते समय पात्र/कुपात्र का ध्यान रखें ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on February 22, 2016 at 10:56 am

आश्रव :-

पैसे से पैसा खिंचता है ।
जिनके सत्ता में ढ़ेरों कर्म हैं, वे ढ़ेरों आश्रव करते रहते हैं ।

चिंतन

ज्यादा गंदगी पर, ज्यादा मक्खीयाँ आती हैं ।

डॉ. एस. एम. जैन

Posted by admin on February 20, 2016 at 10:52 am

मूर्तियाँ रखना :-

इतनी मूर्तियाँ रखी जा रही हैं पर इनका रख रखाव हो नहीं पा रहा है ?
श्रावक यह नहीं समझते कि मूर्ति वेदी पर, वेदी मंदिर में, मंदिर भूमि पर, इन सब में भी जो द्र्व्य लगाया जाता है, उसका पुण्य समान होता है ।

पं.रतनलाल जी – इंदौर

Posted by admin on February 19, 2016 at 10:35 am

भगवान की वाणी / पुरुषार्थ :-

भगवान ने मारीच के जीव को 24 वाँ तीर्थंकर कह दिया, पर इस लंबी यात्रा के दौरान वह बीच का समय स्वर्ग या नरक में बितायेगा यह उसके पुरुषार्थ ने तय किया ।

Posted by admin on February 18, 2016 at 10:32 am

साधु और मंत्र :-

साधु तो स्वयं मंत्र हैं (णमो लोए सव्व साहूणं) ।
जो साधु से मंत्र मांगते हैं तथा जो साधु मंत्र देते हैं, वे दोनों ही मिथ्यादृष्टि हैं ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on February 17, 2016 at 10:11 am

पशुओं के चिन्ह :-

कपड़ों/आसनों पर ऐसे चित्रों पर पैर पड़ने से उनका अनादर/हिंसा का दोष लगता है ।
भगवान के चरणों में आने पर उनका उद्धार हो जाता है ।

Posted by admin on February 15, 2016 at 05:33 am

मोहनीय कर्म :-

मोहनीय कर्म की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह केवल-ज्ञान जैसे बलवान को भी प्रकट नहीं होने देता है ।

चिंतन

Posted by admin on February 13, 2016 at 12:45 pm

अंतराय कर्म :-

जो पदार्थ के अंतर में याने मध्य में आता है ।

पं.जवाहरलाल जी

Posted by admin on February 12, 2016 at 01:18 pm

आभ्यंतर तप :-

मन को नियमित करने वाला तप, या बाह्य द्रव्यों के आलम्बन बिना हो ।

Posted by admin on February 11, 2016 at 03:14 pm

इच्छा :-

इच्छा एक वैकारित/विकृत भाव है ।
इसके आते ही, आत्मा का चरित्र गुण भी विकृत हो जाता है, आत्मा का वास्तविक स्वरूप गायब हो जाता है ।

क्षु. श्री गणेशप्रसाद वर्णी जी

Posted by admin on February 10, 2016 at 12:23 pm

दिग्व्रत :-

पं. सदासुखदास जी का नियम था की वो जिस क्षेत्र की वंदना कर लेते थे, वहां ना जाने का संकल्प कर लेते थे, सीमा से बंध जाते थे ।
ये दिग्व्रत का अच्छा उदाहरण है ।

(श्री संजय)

Posted by admin on February 08, 2016 at 12:14 pm

दान :-

1) लौकिक / पारलौकिक

2) दान की श्रेष्ठता से चयन नहीं, बल्कि आवश्यकता के अनुसार करना चाहिये ।

Posted by admin on February 06, 2016 at 12:11 pm

वैयावृत्ति :-

भाव/श्रद्धा सहित सेवा ।
तपस्वियों की सेवा, इसलिये तपस्या ।

Posted by admin on February 05, 2016 at 12:08 pm

अभिषेक :-

जन्माभिषेक तो सरागी अवस्था का होता है, मंदिरों में जिनाभिषेक ।

Posted by admin on February 04, 2016 at 12:06 pm

प्रतिक्रिया :-

शुभ में हँसे, तो फंसे,
(मद हुआ, मद वाले हाथी को जंजीरों से बांध दिया जाता है)
अशुभ में रोये, तो मरे ।

Posted by admin on February 03, 2016 at 12:02 pm

अनंत :-

भविष्य अनंत है ।
हर क्षण, भविष्य का एक एक क्षण वर्तमान बन रहा है,
यह क्रम अनंतकाल से चला आ रहा है,
फिर भी भविष्य अनंत का अनंत ही बना हुआ है ।

Posted by admin on February 01, 2016 स 03:06 pm

सूतक :-

सूतक वाले घर के कुँए से पानी ले सकते हैं ।
सूतक में भक्तामर आदि का उच्चारण भी कर सकते हैं ।
खून के रिश्तों में ही सूतक लगता है, बाकि सम्बंधों में सिर्फ नहा लेना ।
स्वर्ण की माला कर सकते हैं ।