Posted by admin on January 29, 2016 at 02:57 pm

सम्यग्दर्शन और मोक्ष :-

सम्यग्दर्शन के 33% नंबर हैं, यानि पास या एक तिहाई ।
मोक्ष के लिये 100% लाने होंगे ।
बाकि 67% चारित्र में score करने होंगे ।

चिंतन

Posted by admin on January 28, 2016 at 04:51 pm

आचार्य समंतभद्र स्वामी :-

पुराने आचार्यों ने इनके तीर्थंकर प्रकृति बंध नहीं कहा है ।
पर कुछ नये आचार्य और विद्वान मानते हैं ।

पाठशाला

Posted by admin on January 27, 2016 at 04:49 pm

अरिहंत / व्रती :-

अरिहंत भगवान प्रवृत्ति/निवृत्ति तो बुद्दिपूर्वक करते नहीं, तो क्या महाव्रती हैं ?

तत्वार्थ सूत्र के अनुसार ये “स्नातक” हैं, चारित्र की परम व्यवस्था ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on January 26, 2016 at 04:46 pm

वेदनीय का काम :-

असाता के उदय में कैंसर हो गया – प्राप्ति,
थोड़े समय बाद दर्द शुरू हुआ – अनुभव ।
दोनों काम वेदनीय के ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on January 25, 2016 at 04:41 pm

कुलकरों का आगमन :-

हुंड़ावसर्पिणी की वजह से सारे कुलकर पैदा हुए तीसरे काल, सम्यग्दर्शन (क्षायिक) के साथ आये ।
१४वें ने अपना जीवनकाल बिताया चौथे काल में, शादी भी की ।
उत्सर्पिणी में सारे कुलकर मिथ्यादर्शन के साथ ही पैदा होते हैं ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on January 22, 2016 at 04:17 pm

आत्मा कर्ता :-

रसगुल्ला बिना इच्छा के नहीं खाया जा सकता ।
यदि शरीर पाप करता है तो वह नरक जायेगा ही ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Posted by admin on January 21, 2016 at 04:15 pm

ज़मींकंद / सम्यग्दर्शन :-

सच्चे देव, गुरू, शास्त्र पर श्रद्धा रखने वाला यदि लोलुपता से ज़मींकंद खाता हो तो उसे सम्यग्दर्शन होगा ?

हो सकता है ।
उसके त्रस जीवों की रक्षा के तथा स्थावर की कम से कम घात के भाव रहने चाहिए ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on January 20, 2016 at 00:49 am

पाप :-

पाप कर्म, पाप के उदय में ही हो, यह जरूरी नहीं ।
पाप का उदय तो भूमिका बनाता है, उस भूमिका में, पुरुषार्थी पुण्य का अनुबंध भी कर लेते हैं ।

Posted by admin on January 19, 2016 at 02:02 pm

आत्मा का स्वभाव :-

जब आत्मा का स्वभाव ज्ञातादृष्टा वाला है, तो वह बाहर में क्यों उलझी हुई है ?

संसारी अवस्था में रागीद्वेषी कर्म संसर्ग से वह अपना स्वभाव भूलकर रागीद्वेषी जैसा व्यवहार कर रही है ।

चिंतन

Posted by admin on January 18, 2016 at 01:52 pm

बोधि दुर्लभ :-

बोध – ज्ञान
बोधि – रत्नत्रय (6 गुणस्थान से)
बोधि समाधि – रत्नत्रय पूर्वक समाधि

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on January 15, 2016 at 01:56 pm

पार्श्वनाथ के पूर्वभव :-

भगवान के 10 पूर्वभवों में देव भी हुये, तो उस भव में बदला कैसे लिया ?

राकेश – गुड़गांव

हर भव में बदला लिया हो ज़रूरी नहीं, पर जब मौका मिला तब बदला लिया तथा 10 भव तक बैर चला ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on January 14, 2016 at 01:49 pm

रत्नत्रय :-

सम्यग्दर्शन – बीज/नींव
सम्यकज्ञान – पेड़ बनाना/दीवारें
सम्यकचारित्र – फल/छत
नींव पक्की रखो, चाहे घर कच्चा हो ।
छांव घनी मिलेगी (पाप/व्यसन से बचे रहोगे)

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on January 13, 2016 at 02:46 pm

अनेकांत :-

मैं कहूँ तो है नहीं,
नहीं कहूँ तो है ।
इन दोनों के बीच में, जो है सो है ।
नाक किधर है ?
बायीं आँख बंद करके देखो तो दाँयी ओर, दाँयी बंद करने से बांयी ओर, आँख बंद करने से है ही नहीं ।

पं शिवचरणलाल जी

Posted by admin on January 12, 2016 at 02:40 pm

दिगम्बरत्व :-

आचार्य श्री – दिगम्बर मुद्रा खुली है,
पर हर चर्या खुली नहीं होनी चाहिये ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on January 11, 2016 at 2:38 pm

विग्रहगति :-

इस गति में आत्मा का आकार तो पूर्व का, पर इंद्रियाँ/आयु अगली पर्याय की शुरू हो जाती हैं ।
(जैसे किसी सेठ को पुलिस जेल ले जा रही हो तो लिबास तो सेठ का, पर है कैदी तथा जब सज़ा सुनायी जायेगी तो उसकी अवधि पहले दिन से ही शुरू हो जायेगी – डॉ.एस.एम.जैन)
Posted by admin on January 08, 2016 at 12:59 pm

पुरुषार्थ / होनहार :-

निगोद से निकल कर मोक्ष जाने वालों का पुरूषार्थ नहीं,

होनहार मानना चाहिए ।

Posted by admin on January 07, 2016 at 12:52 pm

अविपाक निर्जरा :-

सराग सम्यग्दृष्टि के पापों की,
वीतराग सम्यग्दृष्टि के पुण्यों की भी ।

पाठशाला

Posted by admin on January 06, 2016 at 12:49 pm

दर्शन / ज्ञान :-

दर्शन – F.I.R है,
ज्ञान – Case Details/Investigation

Posted by admin on January 05, 2016 at 12:46 pm

सम्बंध :-

संसार से सम्बंध “संश्लेष” प्रकृति के ही होने चाहिये – दिखें, मिलें जुलें, पर अस्तित्व अपना अपना बनाऐ रखें, ताकि समय आने पर अलग अलग हो सकें ।

Posted by admin on January 04, 2016 at 2:42 pm

साता / असाता :-

नरकों में साता का उदय क्या करता है ?

जैसा देवों में असाता का उदय करता है,
जैसा अरिहंत के असाता का उदय करता है ।

श्री लालमणी भाई

Posted by admin on January 01, 2016 at 4:13 pm

गोत्र :-

तितली छोटी, बड़ी जन्म से ही होती है ।
छोटी तितली बाद में बड़ी नहीं बन सकती ।

चिंतन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...