Posted by admin on July 29, 2016 at 11:54 pm·

गोत्र :-

आचार्य ज्ञान सागर जी (आचार्य श्री जी के गुरू) के अनुसार चौथे काल में नीच गोत्र, उच्च में बदल भी जाता था और वे मोक्ष भी प्राप्त कर लेते थे ।

पं. रतनलाल बैनाडा जी

Posted by admin on July 28, 2016 at 08:28 am·

खाना / भोजन / आहार :-

खाना सामान्यजन खाते हैं,
भोजन व्रतियों को कराते हैं,
आहार मुनि लेते हैं ।

Posted by admin on July 27, 2016 at 11:24 pm·

ज्ञान/दर्शन :-

ज्ञान साकार, विशेष, भेद वाला,
दर्शन निराकार, सामान्य, भेद रहित होता है ।

पाठशाला

Posted by admin on July 26, 2016 at 09:40 am·

निद्रा :-

निद्रा, दर्शनावरण के उदय से आती है ।
क्योंकि उस समय आत्मा ज्ञानरूप नहीं होती ।

Posted by admin on July 25, 2016 at 10:12 am·

नेमीनाथ भगवान :-

जन्म शौरीपुर में पर बचपन से ही द्वारका चले गये थे ।

पं. रतनलाल बैनाडा जी

Posted by admin on July 22, 2016 at 11:33 am·

श्रुतज्ञान :-

अपने को तथा दूसरों को बताया जाता है,
मतिज्ञान सिर्फ अपने लिये ।

क्षु. ध्यानसागर जी

Posted by admin on July 21, 2016 at 11:22 am·

रागी देवों को अभिवादन :-

जयजिनेन्द्र कर सकते हैं पर जब उनसे साक्षात्कार हो तब ही,
उनके फोटो/मूर्ति को नहीं ।
(संसार में भी यही व्यवहार होता है) ।

मुनि श्री नियमसागर जी

Posted by admin on July 20, 2016 at 11:00 am ·

तीर्थंकर शासनकाल :-

केवलज्ञान होने तक तीर्थंकर को पूर्व तीर्थंकर के शासनकाल में माना जाता है ।
महावीर भगवान के केवलज्ञान के बाद के 63 दिन (देशना खिरने) तक भी वे पार्श्वनाथ भगवान के शासनकाल में माने जायेंगे ।

पं. रतनलाल बैनाडा जी

Posted by admin on July 19, 2016 at 12:26 am ·

आगम :-

“आ गच्छ्ति” सो आगम,
ऐसा ज्ञान जो तीर्थंकर से, आचार्यों के द्वारा आता है ।

क्षु. ध्यानसागर जी

Posted by admin on July 18, 2016 at 11:00 am ·

ज्ञान :-

प्रमाणिकता वक्ता की नहीं, ज्ञान की होती है ।
इसीलिये भगवान पहले ज्ञान प्राप्त करते हैं, तब वक्ता बनते हैं ।

Posted by admin on July 15, 2016 at 10:55 am ·

भगवान का शरीर :-

भगवान का शरीर शांत राग रूचि वाले परमाणुओं से बना होता है ।
इसलिये उसे देखने पर वैराग्य होता है ।

Posted by admin on July 14, 2016 at 05:35 pm ·

जीव की गति :-

जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन है ।
संसारी जीव इधर उधर कर्मों की हवा की वजह से गति करता है ।

Posted by admin on July 13, 2016 at 03:33 pm

अनेकांत :-

3 भाईयों में से बीच वाले भाई को छोटा कहेंगे, बड़े की अपेक्षा,
बड़ा कहेंगे, छोटे की अपेक्षा ।

Posted by admin on July 12, 2016 at 03:31 pm

प्रतिगणधर :-

मुख्य गणधर के अलावा, अन्य गणधरों को प्रतिगणधर कहते हैं ।

Posted by admin on July 11, 2016 at 03:29 pm

व्रत :-

अहिंसा की प्रवृत्ति, हिंसा की निवृत्ति,
दोनों व्रत में आते हैं ।

Posted by admin on July 08, 2016 at 10:46 am

आत्मलीनता :-

अनात्मा से आत्मा का उपयोग हटेगा तब आत्मलीनता आयेगी ।

Posted by admin on July 07, 2016 at 10:44 am

स्थूल झूठ :-

जहाँ सत्य से काम चलता हो, फिर भी झूठ बोलना।
2) जिससे प्रमाणिकता नष्ट हो जाये ।

Posted by admin on July 06, 2016 at 10:43 am

शील :-

आत्मा का वीतराग स्वभाव ।

श्री कषायपाहुड़ – P 608

Posted by admin on July 05, 2016 at 04:23 pm

अभिषेक :-

जिनसेन आचार्यादि ने अकृत्रिम चैत्यालयों, तीर्थंकरों के जन्माभिषेक, नन्दीश्वर द्वीप में देवों के द्वारा ही अभिषेक का वर्णन किया है, देवियों के द्वारा नहीं ।

Posted by admin on July 04, 2016 at 04:21 pm

गंधोदक :-

गर्म जल का प्रयोग करते हैं, इसलिये 6 घंटे से ज़्यादा नहीं रखना चाहिए ।
(सुबह ही मंदिर जाने का एक और आकर्षण) ।

Posted by admin on July 01, 2016 at 11:15 am

धर्म अनुसरण :-

3 प्रकार से –
जन्म,
इच्छा
तथा
कर्म
से धर्म अपनाया जाता है ।