Posted by admin on June 29, 2016 at 10:59 am

ज्ञान :-

मति, श्रुत – अधूरे व अस्पष्ट
अवधि, मन:पर्यय – अधूरे व स्पष्ट
केवलज्ञान – पूरा व स्पष्ट

पाठशाला

Posted by admin on June 28, 2016 at 10:48 am

सम्यग्ज्ञान :-

सम्यग्दृष्टि यदि रस्सी को साँप जान रहा है, तो भी उसका सम्यग्दर्शन खंड़ित नहीं होगा,
क्योंकि यह अप्रयोजनभूत ज्ञान है ।

पाठशाला

Posted by admin on June 27, 2016 at 03:58 pm

पंचपरावर्तन :-

द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव में सबसे छोटा द्रव्य, सबसे बड़ा भाव होता है ।

Posted by admin on June 25, 2016 at 03:56 pm

गर्भ-धारण :-

शास्त्र में धारण से पहले से लेकर जन्म के बाद तक, 52 क्रियाओं का उल्लेख है ।

Posted by admin on June 24, 2016 at 03:07 pm

वासना-काल :-

उदय तो समाप्त हो गया, पर संस्कार बने रहे, निमित्त मिलते ही उदय में आ जाय ।
यह चारों कषायों में लगता है ।
Posted by admin on June 22, 2016 at 03:06 pm

परिग्रह परिमाण :-

कुल संख्या के परिमाण के साथ साथ, रोज़ाना का परिमाण भी रखें ।

Posted by admin on June 21, 2016 at 03:05 pm

निश्चय :-

निश्चय नय से तो निगोदिया तथा भगवान बराबर,
पर निगोदिया की मूर्ति नहीं बनती ।

Posted by admin on June 20, 2016 at 11:11 am

ज्ञानावरण :-

कान में मैल का पर्दा पड़ गया तो ध्वनि का ज्ञान नहीं हो पाता, यही ज्ञानावरण है ।

Posted by admin on June 18, 2016 at 11:09 am

अनेकांत :-

अँग्रेज़ी का “No” एकांत है,
धर्म का “नो” अनेकांत ।
(जैसे नो-कषाय में “नो” का मतलब होता है- “किंचित”)

 

चिंतन

Posted by admin on June 17, 2016 at 12:32 pm

अंतराय :-

आत्मा की शक्ति प्रकट होने में रूकावट ।

Posted by admin on June 15, 2016 at 12:30 pm

गोत्र :-

मिट्टी के बर्तन से – शराब का प्याला भी और मंगल कलश भी बनते हैं ।

Posted by admin on June 14, 2016 at 10:18 am

कर्म :-

कर्म जड़ है,
पर इसकी जड़ चेतन में धंसी रहती है,
इसीलिये चेतन जैसा व्यवहार करता है ।

Posted by admin on June 13, 2016 at 10:16 am

अशुभ/शुभ/शुद्ध :-

अशुभ धरातल है,
शुभ सीढ़ी,
शुद्ध छत ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on June 11, 2016 at 10:12 am

मरण के समय :-

णमोकार का उच्चारण मरण से कम से कम एक मुहूर्त्त बाद तक करते रहना चाहिए, क्योंकि एक मुहूर्त्त तक प्राण, बाह्य चिन्ह समाप्त होने के बाद भी रह सकते हैं ।

Posted by admin on June 10, 2016 at 02:02 pm

श्रुत-पंचमी :-

श्रुत न्यायाधीश के फैसले जैसा है,उसमें फेरबदल करने का हक़ न्यायाधीश(भगवान) को ही होता है,
श्रुत संविधान है ।
श्रुत मार्ग बताता है,
मार्ग को काल के माध्यम से मापना ज़्यादा उपयोगी होता है,
मार्ग से गंतव्य तक पहुँचने के लिये दिशा, चलना तथा व्रत रूपी वाहन का महत्त्व होता है,
सिर्फ गंतव्य के बारे में पढ़ते रहने से मोक्ष नहीं मिलता ।

आ.श्री विद्यासागर जी

Posted by admin on June 08, 2016 at 02:02 pm

दुर्भग :-

सुंदर होते हुए भी प्रिय न लगे, ऐसा दुर्भाग्य ।

Posted by admin on June 07, 2016 at 02:04 pm

अनुदिश :-

सब दिशाओं में स्थित है, इसलिये अनुदिश कहते हैं ।

तत्त्वार्थ सूत्र – P 259

Posted by admin on June 06, 2016 at 02:02 pm

पुदगल :-

पुद = मिलना,
गल = गलना

पाठशाला

Posted by admin on June 04, 2016 at 12:36 pm

सम्यग्दृष्टि :-

जो मंदिर में तिलक लगाने वाले शीशे में बाल ना काढ़ता हो ।

Posted by admin on June 03, 2016 at 12:34 pm

सल्लेखना :-

सल्लेखना पूर्वक समाधि आ. श्री शांतिसागर जी के बाद आ. श्री ज्ञानसागर जी की ही हुई थी ।
बीच के आचार्यों की तो आकस्मिक समाधि हो गयी थी ।

Posted by admin on June 01, 2016 at 09:38 am

शचि :-

चूँकि शचि सबसे पहले भगवान के दर्शन करती है (माता / पिता, इंद्र से भी पहले) इसीलिये (शायद) वह इन सबसे पहले मोक्ष जाती होगी ।