Posted by admin on May 31, 2016 at 01:27 pm

संवेग :-

भीति, प्रीति, प्रतीति, परणति से ही संवेग गुण हमारे जीवन में घटित होता है ।

Posted by admin on May 28, 2016 at 05:38 pm

फ़ुर्सत :-

आदमी को मरने की फ़ुर्सत नहीं,
निगोदिया को मरने से फ़ुर्सत नहीं ।

(धर्मेंद्र)

Posted by admin on May 25, 2016 at 05:38 pm

मूर्ति :-

पाषाण, धातु आदि चिर-स्थायी Material की बनाते हैं ।

Posted by admin on May 24, 2016 at 05:30 pm

शासन-काल :-

भगवान महावीर की दिव्यध्वनि खिरने तक वे गृहस्थ अवस्था में, भगवान पार्श्वनाथ के शासन काल में माने जायेंगे ।

Posted by admin on May 21, 2016 at 05:27 pm

विहार में मुख :-

समवसरण की तरह भगवान के श्री विहार में चार मुख दिखायी देते हैं ।

श्री हरिवंश पुराण – 702

Posted by admin on May 20, 2016 at 04:21 pm

भव-प्रत्यय अवधि-ज्ञान :-

पाँच कल्याणक वाले भगवानों का अवधि-ज्ञान, भव-प्रत्यय से ज़्यादा भव-अनुगामी मानना चाहिए ।

Posted by admin on May 19, 2016 at 04:18 pm

पुण्य :-

समयसार में सोना बनाने की विधि बतायी है,
पर शर्त यह है कि आपके पुण्य का उदय हो ।

Posted by admin on May 18, 2016 at 03:43 pm

हरी मटर / चना :-

अन्न नहीं हैं,
हरी हैं ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on May 17, 2016 at 03:41 pm

शूद्र जल :-

आगम में शूद्र जल का त्याग का वर्णन कहीं नहीं आता है ।

Posted by admin on May 14, 2016 at 02:01 pm

निर्धनता :-

कृपणता, देवद्रव्य का भोग, दान न करना, निर्धनता का कारण है ।

Posted by admin on May 13, 2016 at 01:59 pm

आत्मा / परमात्मा :-

आत्मा आवरण सहित चावल है,
परमात्मा आवरण रहित चावल ।

Posted by admin on May 12, 2016 at 01:57 pm

अधिक मास :-

दो मास होने पर भगवान के कल्याणक किस मास में मानें ?

पहले मास के पहले 15 दिन(1-15) तथा दूसरे के आख़िरी 15 दिन(16-30/31) मानने चाहिये ।

Posted by admin on May 11, 2016 at 03:18 pm

सुख :-

सच्चा सुख कैसे प्राप्त हो ?

झूठे सुख में आनंद लेना बंद कर दो ।
बच्चा निपिल में आनंद लेता रहेगा, तब तक माँ का दूध नहीं मिलेगा ।

Posted by admin on May 10, 2016 at 03:16 pm

चौदस को हरी त्याग :-

हरी त्याग के मुख्य कारण – हिंसा तथा उनमें जल की अधिकता ।

Posted by admin on May 07, 2016 at 03:28 pm

समयप्रबद्ध :-

एक समय में बंधने वाली कर्म वर्गणाऐं ।

Posted by admin on May 06, 2016 at 03:04 pm

आगम :-

आप्त की कही, गणधर की गूँथी, मुनियों की लिखी ।

Posted by admin on May 05, 2016 at 03:02 pm

दीक्षा :-

मुनि भी दीक्षा दे सकते हैं ।

Posted by admin on May 04, 2016 at 03:00 pm

सच्चे देव :-

वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी ।
ये गुण तीर्थंकर में ही घटित किये जाते हैं ,
मूक केवली को सामर्थ्य की अपेक्षा हितोपदेशी कहा जा सकता है ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on May 03, 2016 at 05:27 pm

भगवान अंतरिक्ष में क्यों ? :-

विकारी भारी होते हैं, इसलिये पृथ्वी पर भार बने चिपके रहते हैं ।
भगवान अविकारी/हल्के, सो ऊपर उठ जाते हैं ।