Posted by admin on September 29, 2016 at 02:14 AM·
जन/जिन :-
जन वैभव को सिर पर बैठाते हैं,
जिन वैभव के सिर पर बैठते हैं ।
Posted by admin on September 28, 2016 at 11:15 AM·
आहार की बेला :-
सूर्योदय से 3 घड़ी बाद से सूर्यास्त के 3 घड़ी पहले तक ।
सुबह पूजा के बाद या सामायिक के बाद ।
पाठशाला
Posted by admin on September 27, 2016 at 11:08 AM·
आकिंचन्य :-
त्याग के त्याग का नाम भी आकिंचन्य है ।
Posted by admin on September 26, 2016 at 11:15 AM·
सम्यग्दृष्टि की पहचान :-
जो आपदा आने पर भी दुखी ना हो ।
चिंतन
Posted by admin on September 24, 2016 at 01:41 AM·
भगवान के रंग :-
सभी भगवान के शरीर स्वर्णिम ही होते हैं ।
वर्तमान चौबीसी में अलग अलग हुंड़ा के प्रभाव से हुये थे ।
Posted by admin on September 22, 2016 at 02:18 AM·
उपाध्याय :-
आचार्य श्री के संघ में एक बार उपाध्याय पद देने की चर्चा हुई तो सारे मुनि, आचार्य श्री के पास पहुँच गये कि हममें से किसी को ये पद नहीं चाहिए ।
( किसी को पद देने का मतलब, पढ़ाने का काम आचार्य श्री नहीं करेंगे ) ।
नेहा चौधरी
Posted by admin on September 21, 2016 at 00:14 AM·
मूर्ति :-
भगवान की मूर्ति के सिर पर उठा भाग केवल कल्याण ( ज्ञान ) का प्रतीक है ।
Posted by admin on September 20, 2016 at 04:12 AM·
मन:पर्यय :-
जो मन की पर्यायों को जाने ।
पाठशाला
Posted by admin on September 19, 2016 at 09:35 AM·
अचल प्रतिमा :-
मूलनायक प्रतिमा अचल होनी चाहिए, सुरक्षा की दृष्टि से ।
Posted by admin on September 17, 2016 at 09:30 AM·
तप और फल :-
पर के लिये किया गया तप द्रव्य-तप है, इससे भाव-तप नहीं, आत्मा का कल्याण नहीं, ऊपर से सुंदर नारियल है, जो अंदर से सड़ गया है ।
भौतिक फल अर्पित करके बदले में मोक्ष फल की कामना करते हैं । ( मोक्ष फल की भी कामना नहीं करेंगे )
मुनि श्री नियमसागर जी
Posted by admin on September 15, 2016 at 11:46 AM·
मंत्रों का प्रभाव :-
शब्द भी पुदगल हैं, कानों पर पड़ने पर भावों के साथ द्रव्य भी बदलता है ।
असाता/अस्वस्थता कम होती है ।
मंत्र = मन की रक्षा करे ।
Posted by admin on September 14, 2016 at 09:40 AM·
पर :-
पर को छोड़ने वाला परमेश्वर बनता है,
पर को पकड़ने वाला पतित ।
Posted by admin on September 13, 2016 at 11:30 AM·
मोक्ष :-
पंचमकाल में मोक्ष नहीं पर मोक्षमार्ग है ।
करें क्या ??
आचार्य श्री – कुछ नहीं करना है, जिधर मुँह है, उधर पीठ करलो, बस ।
Posted by admin on September 12, 2016 at 09:35 AM·
सूतक :-
विधान आदि में सूतक से कैसे बचें ?
- विधान आदि में इंद्र बनते हैं ।
इंद्रों का गोत्र नहीं होता ( सूतक तो हमारे गोत्र को लगता है ) ।
पर विधान के दौरान घर नहीं जाना होगा । - तीर्थ यात्रा पर जाते समय संकल्प लें – हमारा अपने परिवार से इतने दिनों के लिये संबंध नहीं है ।
पं. श्री राजेन्द्र शास्त्री
Posted by admin on September 10, 2016 at 11:58 AM·
परमुख :-
आयु और मोहनीय कर्म अपना अपना फल स्वमुख ही देते हैं ।
श्री हरिवंशपुराण (पं. रतनलाल बैनाड़ा जी)
Posted by admin on September 08, 2016 at 11:15 AM·
संतान की एक रूपता :-
कर्म अपना फल क्षेत्रादि के अनुरूप देते हैं ।
बच्चों के नाम कर्म, माता-पिता के द्रव्यों से प्रभावित होते हैं ।
इसलिये माता-पिता के शरीरों से एक रूपता दिखती है ।
जैसे लाल मिट्टी में लाल कीड़े पाये जाते हैं ।
Posted by admin on September 07, 2016 at 01:40 AM·
देवों का क्रम :-
सबसे कम पुण्य व्यंतरों के होते हैं ।
पर तत्त्वार्थसूत्र आदि में भवनवासियों को सबसे नीचे Minimum संख्या के आधार पर रखा है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
Posted by admin on September 06, 2016 at 02:45 AM·
चरणों का स्पर्श :-
शिखर जी आदि पर स्त्रियाँ चरणों का स्पर्श कर सकतीं हैं ।
क्योंकि ये भगवान के चरण नहीं हैं, चरण चिन्ह हैं ( कल्याणक भी नहीं हुये) ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Posted by admin on September 05, 2016 at 09:25 AM·
अभक्ष्य :-
अभक्ष्य वो है जो आपके पक्ष में ना हो ।
मुनि श्री प्रभावनासागर जी
Posted by admin on September 03, 2016 at 09:20 AM·
समवसरण :-
12 कोठों में आने वाले जीवों के बारे में ३ मत हैं –
- इनमें सम्यग्दृष्टि ही जाते हैं – तिलोयपण्णति
- मिथ्यादृष्टि भी जाते हैं – हरवंश पुराण
- अभव्य भी जाते हैं – महापुराण
Posted by admin on September 01, 2016 at 11:41 AM·
सम्यग्दृष्टि का संसार :-
चक्रवर्ती ने महल बनवाया नहीं, बन गया, इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि परिवार पालता नहीं, पल जाता है ।