Posted by admin on August 29, 2015 at 11:47 AM ·

पूजा :-

रागी की पूजा से कंधों का बोझ कम हो जाता है,
वीतरागी की पूजा से कंधे बोझ उठाने लायक हो जाते हैं ।

Posted by admin on August 28, 2015 at 11:45 AM ·

भवनत्रिक देव :-

ये देव अपने से कमजोर देवों की देवियाँ/वैभव आदि छीन भी लेते हैं ।

पं रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on August 27, 2015 at 11:43 AM ·

चंदोबा :-

आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज ( आचार्य श्री शांतिसागर जी के शिष्य) के अभिनंदन ग्रंथ में लिखा है – कच्ची छत पर चंदोबा जरूरी है पक्की छत पर नहीं ।

पाठशाला

Posted by admin on August 26, 2015 at 11:39 AM ·

ज्ञान :-

ज्ञान का ना जमना मिथ्याज्ञान है ।

पं रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on August 25, 2015 at 11:22 AM ·

आर्तध्यान :-

आर्तध्यान से आत्म ध्यान की ओर आत्मसंबोधन से ही संभव है ।
कर्म तो पीड़ा देगा 4 दिन, अज्ञान पीड़ित करेगा 40 दिन ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 22, 2015 at 11:37 AM ·

अंतराय :-

प्रतिमाधारियों को अंतराय दर्शन, श्रवण आदि से होता है, पर बाल से नहीं ।

Posted by admin on August 21, 2015 at 11:33 AM ·

क्रम :-

आदिनाथ भगवान ने पहले षट्कर्म बताये, फिर धर्म बताया ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Posted by admin on August 20, 2015 at 11:14 AM ·

औषधि :-

औषधि लेने से द्रव्य बदलता है (पुरूषार्थ किया),
तथा भाव भी बदले (विश्वास जाग्रत हुआ) ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 19, 2015 at 00:39 AM ·

नवकार मंत्र :-

Posted by admin on August 18, 2015 at 04:39 PM ·

नवग्रह :-

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 14, 2015 at 04:30 PM ·

सल्लेखना :-

भाव लिंगी मुनि अधिक से अधिक 32 भव में मोक्ष,
सल्लेखना वाले 8 भव में ।
यह है सल्लेखना का महत्व !!

मुनि श्री निर्वेगसागर जी

Posted by admin on August 13, 2015 at 12:13 PM ·

मुनि :-

परिग्रही मुनि को पूजना चाहिए ?

मूर्ति खंड़ित होने पर पूज्य रह जाती है क्या ?
परिग्रही मुनि ने निष्परग्रही मुनि की मुद्रा को खंड़ित किया न ?

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 12, 2015 at 0:51 PM ·

विभ्रम:-

अती का भ्रम,
जैसे “शुध्द” के आगे “वि” लगा देने से “विशुध्द” याने “बहुत शुध्द” माना जाता है ।

चिंतन

Posted by admin on August 11, 2015 at 02:51 PM ·

द्वारिका:-

12 योजन लंम्बी तथा 9 योजन चौडी थी ।

अशुभ तैजस भी इतना ही बडा होता है ।

इसीलिये पूरी द्वारिका भस्म होगयी थी ।

श्री हरवंश पु.-पे.500

Posted by admin on August 08, 2015 at 12:24 PM ·

मूर्तियों की संख्या :-

वेदी पर मूर्तियाँ विषम संख्या में ही क्यों ?

सम संख्याऐं काट्य हैं, विषम अकाट्य ।
हमारे भगवान भी अकाट्य हैं ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 7, 2015 at 12:16 PM ·

पुण्य :-

पुण्य का घात करने के लिये संक्लेश करना होता है ।
इसीलिये सम्यग्दृष्टि/भगवान पुण्य का घात नहीं करते ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 6, 2015 at 02:51 PM ·

अनुप्रेक्षा / आम्नाय:-

अनुप्रेक्षा याने बार-बार चिंतवन, ये कारण है,
आम्नाय ,अनुप्रेक्षा का फ़ल, कार्य है ।

(चिंतन)

Posted by admin on August 5, 2015 at 12:51 PM ·

चमत्कार :-

चमत्कार से आत्मा में परिवर्तन नहीं होता है ।

Posted by admin on August 4, 2015 at 12:18 PM ·

पंचमेरू :-

प्रतिष्ठा का विधान नहीं है, वेदी पर ना रखें ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on August 3, 2015 at 12:15 PM ·

उपादान/निमित्त :-

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के गुणों का उत्पाद तो नहीं करता पर गुणों को प्रकट करने में निमित्त अवश्य बनता है ।

पं शिवचरणलाल जी

Posted by admin on August 1, 2015 at 03:45 PM ·

तम/छाया :-

तम दृष्टि अवरोधका:,
छाया प्रकाश अवरोधका:

मुनि श्री कुंथुसागर जी

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