Posted by admin on November 29, 2015 at 2:21 pm
भेद विज्ञान :-
मैं आत्मा हूँ,
इसका सम्बंध मेरे शरीर से नहीं ,
तो सम्बंधियों के शरीर से कैसे हो सकता है ?
चिंतन
Posted by admin on November 28, 2015 at 2:16 pm
व्रत/नियम/संयम :-
व्रत यानि पापों में Break,
नियम – व्रत कुछ समय के लिये, Side Mirror
संयम – सावधानी से कार चलाना
Posted by admin on November 27, 2015 at 12:35 pm
विक्रिया:- :-
अनेक शरीर धारण करने पर भी कर्मबंध एक शरीर के बराबर ही बंधेगा,
क्योंकि उपयोग तो एक ही रहेगा ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on November 25, 2015 at 12:35 pm
सम्यग्दृष्टि/दरिद्रता :-
सम्यग्दृष्टि को अनंत संसार रूपी कचरे की जगह चुल्लूभर रत्न मिलने से दरिद्रता समाप्त हो जाती है ।
Posted by admin on November 24, 2015 at 12:33 pm
श्रवणेंद्रिय :-
सांप शरीर से सुनता है,
विकलेंद्रिय कंपन से अनुभव करते हैं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on November 21, 2015 at 12:30 pm
जिन/जिन्न :-
दोनों ही के माध्यम से लाभ होता है ।
जिन से स्थायी, जिन्न से अस्थायी ।
जिन की भक्ति ना करने से वे नाराज नहीं होते, जिन्न होते हैं ।
Posted by admin on November 20, 2015 at 3:59 pm
छहढ़ाला :-
पं. दौलतराम जी ने पहले ही लिख दिया था – “जो मुनियों ने कही, वह लिख रहा हूँ” ।
इसलिये छहढ़ाला सबके पढ़ने योग्य है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on November 19, 2015 at 3:51 pm
स्थिरता :-
मोह और क्षोभ दूर होने से चित्त में स्थिरता आती है ।
और ये दूर/कम होते हैं – दर्शन और चारित्र मोहनीय के क्षय/कम करने से ।
Posted by admin on November 18, 2015 at 3:48 pm
मार्दव/मान :-
मार्दव – छोटों को गले लगाना,
मान – छोटों के गले न लगना ।
Posted by admin on November 17, 2015 at 3:40 pm
गोत्र :-
नारकी, त्रियंच (भोग भूमि के तथा 5 गुणस्थान* तक के) नीच गोत्र ।
भवनत्रिक तक के देव, उच्च गोत्र के होते हैं ।
*कोई कोई पंचम गुण-स्थानवर्ती गोत्र परिवर्तन भी कर लेते हैं।
श्री कर्मकांड़ गाथा – 302/303
Posted by admin on November 14, 2015 at 4:00 pm
दुखमा :-
दुखमा काल में आकर, हर समय दुखी रहे तो दुगना दुखी होना होगा,
यानि दुखमा-दुखमा काल में जन्म लेना होगा ।
चिंतन
Posted by admin on November 13, 2015 at 3:57 pm
रक्षा बंधन :-
कर्मों से ना बंधकर ,स्वरूप की रक्षा करना ।
(श्री धर्मेंद्र)
Posted by admin on November 12, 2015 at 3:51 pm
अतिचार :-
भीष्म पितामह का ब्रम्हचर्य व्रत तो मशहूर हुआ, फिर अंत खराब क्यों ?
अतिचार का ध्यान नहीं रखा, अम्बा का अपहरण कर लाये थे ।
श्री लालमणी भाई
Posted by admin on November 11, 2015 at 3:48 pm
आत्मा :-
आत्मा का स्वरूप – ज्ञान/दर्शन
आत्मा का स्वभाव – ज्ञाता दृष्टा
Posted by admin on November 10, 2015 at 8:10 pm
निर्वाण-दिवस:-
लाडू सब तरफ़ से मीठा होता है, आत्मतत्व भी ।
रागरंग में भी विराग का अनुभव करते हैं ।
म्रत्यु पर रोते नहीं (क्योंकि खुद को शरीर नहीं मानते) महोत्सव मनाते हैं,
आज महावीर भगवान तो नहीं हैं पर महावीरत्व मौजूद है ।
अमावस्या को दीपक जलाकर पूर्णिमा बना देते हैं, बाहर और अंदर भी ।
Posted by admin on November 08, 2015 at 8:10 pm
धनतेरस:-
धनतेरस को जैन आगम में धन्य-तेरस या ध्यान-तेरस भी कहते हैं ।
भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये ।
तभी से यह दिन धन्य-तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गुरूवर मुनि श्री क्षमासागर जी/पं. रतनलाल बैनाडा जी
Posted by admin on November 06, 2015 at 8:10 pm
प्रायश्चित:-
आचार्य श्री शांति सागर जी के दर्शनार्थ एक महिला आयीं, उनकी नथ खो गयी ।
महिला को कुछ लोगों पर शक हुआ, पर नथ उन्हीं के पास मिल गयी ।
आचार्य श्री ने उन्हें प्रायश्चित दिया कि उन सब लोगों को (जिनपर शक था)भोजन बना कर खिलाओ ।
Posted by admin on November 05, 2015 at 1:37 pm ·
परम औदारिक शरीर :-
12 वें गुणस्थान के अंत में निगोदिया जीव अपनी आयु पूर्ण कर समाप्त हो जाते हैं और भगवान का शरीर परम औदारिक हो जाता है ।
जिनभाषित
Posted by admin on November 04, 2015 at 12:40 pm ·
तीन मूढ़ता :-
कुदेव, कुगुरू, कुधर्म ( लोक ) अश्रद्धा का विषय है, जबकि छ: अनायतन स्थान की अपेक्षा है ।
Posted by admin on November 03, 2015 at 07:02 pm ·
श्वांसोच्छवास :-
आहार श्वांस जैसा है, निहार उच्छवास जैसा ।
Posted by admin on November 01, 2015 at 10:10 am
पूजा/विधान :-
विधान में पूजा के साथ साथ जाप तथा मंड़ल (तांत्रिक प्रभाव) का विशेष महत्व होता है ।