Posted by admin on July 31, 2015 at 02:51 PM ·

तीर्थंकरों के चारित्र :-

भगवान के सम्यक्चारित्र 8 वर्ष होने पर नहीं, मुनि बनने पर ही होता है, तभी तो रत्नत्रय धारण कर पायेंगे ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

Posted by admin on July 29, 2015 at 12:30 PM ·

श्वोसोच्छवास :-

बिना नाक वालों के भी होता है (रोमों से) ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on July 28, 2015 at 02:39 PM ·

तीर्थंकर के अवधिज्ञान :-

तीर्थंकर चाहे नरक से आयें, अवधिज्ञान लेकर ही आते हैं ।

Posted by admin on July 27, 2015 at 12:46 PM ·

त्रियंचों में विक्रिया :-

इनमें पूर्व भवों के तप से प्रकट हो जाती है ।

मुनि श्री निर्वेगसागर जी

Posted by admin on July 25, 2015 at 12:36 PM ·

नाश :-

दीपक के बुझने से उसका नाश नहीं होता ।

प्रकाश रूपी पुदगल, अंधकार रूपी पुदगल में पर्याय परिवर्तन होता है ।

मुनि श्री निर्वेगसागर जी

Posted by admin on July 24, 2015 at 12:33 PM ·

दर्शन विशुद्धि :-

यह जरूरी इसलिये कि बिना विशुद्धि – सम्यग्दर्शन के बाकी 15 भावनायें व्यर्थ हैं ।

पाठशाला

Posted by admin on July 22, 2015 at 12:30 PM ·

साम्य-द्रष्टि :-

सम्यग्-द्रष्टि से संयम-द्रष्टि,
और
संयम-द्रष्टि से साम्य-द्रष्टि अति दुर्लभ है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Posted by admin on July 21, 2015 at 11:58 AM ·

पूजा :-

प्राय: जैन भी जिन को कुदेव की तरह ही पूजते हैं (इसलिये मिथ्यात्व को ही पुष्ट करते हैं) ।
बांट तराजू ना पूजने वाले अमेरिकन, हमसे ज्यादा समृद्ध हैं ।

मुनि श्री पुलकसागर जी

Posted by admin on July 20, 2015 at 11:49 AM ·

आश्रव :-

पैसे से पैसा खिंचता है ।
जिसके सत्ता में ढ़ेरों कर्म हैं, वे ढ़ेरों आश्रव करते रहते हैं ।

चिंतन

ज्यादा गंदगी पर, ज्यादा मक्खीयाँ आती हैं ।

डॉ. एस. एम. जैन

Posted by admin on July 18, 2015 at 12:25 PM ·

वेग :-

जहाँ वेग है, वहाँ उद्वेग होगा,
और
वहाँ संवेग और निर्वेग समाप्त हो जायेगा ।
Posted by admin on July 26, 2015 at 01:07 AM ·

विक्रिया :-

अनेक शरीर धारण करने पर भी कर्मबंध एक शरीर के बराबर ही बंधेगा,
क्योंकि उपयोग तो एक ही रहेगा ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on July 17, 2015 at 11:44 AM ·

मिथ्यात्व

कष्ट निवारण के लिये पार्श्वनाथ की पूजन करना मिथ्यात्व है क्या ?

पूजा करना मिथ्यात्व नहीं है, पूजा करने के पीछे का अभिप्राय मिथ्यात्व है ।

चिंतन

Posted by admin on July 15, 2015 at 5:40 PM ·

वेदन/वेदना :-

वेदन तो कर्माधीन हैं, होगा ही ।
पर वेदना पुरुषार्थाधीन है, महसूस करें या न करें ।
वेदन की तीव्रता = वेदना

श्री लालमणी भाई

Posted by admin on July 14, 2015 at 7:27 PM ·

मोह :-
विषयों की मिठाई से मोह बढ़ता है,
वीतरागता की खटाई से खटाई में पड़ जाता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on July 13, 2015 at 12:27 PM ·

दिगम्बरत्व :-

दोष नग्नता में नहीं, कृत्रिम जीवन का है ।
बीमार व्यक्ति को पौष्टिक आहार में भी दोष दिखता है ।

Posted by admin on July 12, 2015 at 12:25 PM ·

भेद विज्ञान :-

भेद विज्ञान से कर्म क्षय नहीं, भेद विज्ञानी की साधना से क्षय होता है ।

Posted by admin on July 11, 2015 at 12:23 PM ·

स्व-पर कल्याण :-

सम्यग्दर्शन के पहले 4 अंग, स्व कल्याण के लिये हैं ।
अगले 4 अंग “पर” कल्याण के लिये ।

Posted by admin on July 10, 2015 at 12:19 PM ·

समवसरण :-

अष्टम भूमि (12 कोठों में) सम्यग्द्रष्टि ही जा सकते हैं ।
पर इसमें अलग अलग आचार्यों के अलग अलग मत हैं ।

Posted by admin on July 08, 2015 at 12:16 PM ·

तीर्थंकर :-

जिनसे द्वादशांग की रचना हो तथा द्वादशांग पर आधारित चतुर्विध संघ बने ।

Posted by admin on July 07, 2015 at 11:42 PM ·

ज्ञान :-

आचार्य श्री – अपने ज्ञान को दर्शनवत् बनाओ ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

Posted by admin on July 06, 2015 at 11:21 PM ·

चार अवस्थायें :-

मिथ्यात्वी – ठोस
सम्यग्द्रष्टि – तरल
साधु – गैस
सिद्ध – प्लास्मा

ब्र. नीलेश भैया

Posted by admin on July 04, 2015 at 11:17 PM ·

ठोने में स्थापना :-

यदि पूजन में आवाह्न आदि हो तो ठोने में स्थापना कर लें ।

पं. मुख्तार जी

Posted by admin on July 03, 2015 at 11:23 AM ·

सोला :-

नवधा भक्ति +7 दाता के गुण = 16
सोला के चक्कर में शोला ना बनना ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Posted by admin on July 01, 2015 at 11:27 PM ·

दही :-

कच्चे दूध का दही अभक्ष्य होता है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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