Posted by admin on March 31, 2015 at 03:33 PM ·
यश नामकर्म :-
जिसके उदय से पुण्य गुण जगत में प्रकट हो ।
कर्मकांड़ – 22
Posted by admin on March 29, 2015 at 03:29 PM ·
विसंयोजना :-
तीर्थ यात्रा पर जाते समय भारी भारी सामान छोड़ गये/हलका हल्का ले गये ।
घर/संसार में लौटने पर भारी भारी सामान को ग्रहण कर लिया ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
Posted by admin on March 28, 2015 at 12:56 PM ·
मूलनायक :-
जैनबद्री (श्रवणबेलगोला) में मूलनायक कौन ?
बाहुबली नहीं, नेमीनाथ भगवान ।
इनकी छोटी सी प्रतिमा रखी है,
मूलनायक हमेशा तीर्थंकर ही होते हैं ।
ब्र. श्रेयांस भैया
(This also proves that bigness is not by size but by purpose)
Posted by admin on March 26, 2015 at 09:57 AM ·
स्वाध्याय :-
माँ तो दो स्तनों से बच्चे का पोषण करती है, जिनवाणी माँ चार से ।
यदि एक थन से दूध नहीं निकाला तो जिनवाणी माँ बीमार हो जायेगी ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 24, 2015 at 09:48 AM ·
करूणा :-
करूणा जीव का स्वभाव है तो सब में दिखती क्यों नहीं है ।
कर्मों के आवरण से कम ज्यादा प्रकटता में अंतर होता है ।
(वैसे करूणा ,पारिणामिक भाव है )
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 21, 2015 at 03:48 PM ·
धार्मिक क्रियायें :-
क्या धार्मिक क्रियायें, धर्म ध्यान हैं ?
सम्यग्दर्शन के साथ धार्मिक क्रियायें, धर्म ध्यान हैं,
अन्यथा आर्त, रौद्र ध्यान हैं,
पर बिना सम्यग्दर्शन के शुभ क्रियायें तो हैं ही, पुण्य तो मिलता ही है ।
पाठशाला
Posted by admin on March 19, 2015 at 03:35 PM ·
वात्सल्य :-
मुनि मुनि से वात्सल्य करेगा (वह भी वीतरागी से) ।
श्रावक से नहीं, उसे आर्शीवाद देगा ।
श्रावक मुनि से भक्ति रखेगा क्योंकि वात्सल्य तो साधर्मी से किया जाता है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 17, 2015 at 12:00 AM ·
प्रकाश/अंधकार :-
दोनों ही पौदगलिक वर्गणायें हैं ।
प्रकाश में अंधकार खत्म हो जाता है, पुदगल की पर्याय बदल जाती है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 14, 2015 at 11:43 AM ·
संयमी/असंयमी :-
संयमी सोने का घड़ा है, छेद होने पर भी कीमत कम नहीं होती है ।
असंयमी मिट्टी का घड़ा है, छेद होते ही कीमत मिट जाती है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Posted by admin on March 12, 2015 at 11:39 AM ·
मूलगुण :-
मूलगुणों को छोड़कर उत्तर गुणों की ओर जाना पतन का कारण है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
एक महाराज जी 5 उपवास के बाद, छठे की आज्ञा लेने आये,
आचार्य श्री ने पूछा – सामायिक बैठकर की थी या लेटकर ?
महाराज – लेटकर ।
आचार्य श्री – आहार ले लो ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 10, 2015 at 05:42 PM ·
सम्यग्दर्शन और अनुभूति :-
सम्यग्दृष्टि को श्रद्धानुभूति ही होती है ।
दूध का स्वाद तो आता है, पर घी की गंध नहीं ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी
Posted by admin on March 07, 2015 at 12:01 PM ·
ध्यान :-
वर्तमान के हीन संहनन वालों का ध्यान –
उत्कृष्ट ध्यान एक आंवली से भी कम और ये मुनियों के ही होता है,
जघन्य 2-4 समय का काल होता है ।
इसीलिये मुनियों को भी स्वाध्याय में चित्त लगाने को कहा है ।
व्य. कृ. – 687
Posted by admin on March 05, 2015 at 11:58 AM ·
कषाय :-
पहली तीनों कषायों का उदय , उन्ही गुणस्थानों तक होता है, जहाँ तक उनका बंध होता है ।
सिर्फ संज्वलन कषाय का बंध 9 तक, उदय 10 तक, सत्ता 11 गुणस्थान तक चलती है ।
बाई ज़ी
Posted by admin on March 03, 2015 at 03:32 PM ·
नवधा भक्ति :-
तीनों तरह के सुपात्रों को यथायोग्य नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराना चाहिये ।
श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा
(नवधा भक्ति नहीं कहा, यथायोग्य नवधा भक्ति कहा है। यानि सबके लिये पूरी नवधा भक्ति नहीं)
Posted by admin on March 01, 2015 at 12:58 PM ·
निर्विचिकित्सा :-
मुनियों के पैरों में मिट्टी लगी रहती है, उनको धोकर सिर पर लगाना अशुद्धि नहीं ?
आचार्य श्री – नहीं बल्कि निर्विचिकित्सा अंग में द्रढ़ता आती है ।
मुनि श्री कुंथुसागर जी