Month: January 2010
कर्म प्रकृति में करण
नरकायु का चौथे गुणस्थान तक, तिर्यन्चायु का पांचवे गुणस्थान तक अपकर्षण, उदीरणा, सत्त्व, उदय करण होते रहते हैं । कर्मकांड़ गाथा : – 448
धर्म
धर्म तो Homeopathic दवा है। जो आपकी बीमारियों ( कमज़ोरियों) को पहले दिखाती ( उभारता ) है, फिर ठीक करती है । चिंतन
पुरूषार्थ
पुरूष ( आत्मा ) के द्वारा किया गया कार्य, जिसका अर्थ व्यर्थ ना हो । श्री लालमणी भाई
कर्म प्रकृति में करण
नौवें दसवें गुणस्थानों में उपशम, निद्यत्ति, और निकाचित करण नहीं होते । क्योंकि अनिवृत्ति करण परिणामों से उपशम, निद्यत्ति, और निकाचितपना टूट जाता है ।
Self Realization
मैं पहले Railway में Deputy था, फिर गुरू का Deputy बना, अब अपना Deputy बनने की प्रक्रिया में हूँ, और Final Goal अपना ही Chief
कर्म प्रकृति में करण
4 आयुयों में संक्रमण करण के अलावा 9 करण होते हैं, शेष प्रकृतियों में दसों करण होते हैं । 1 से 8 गुणस्थान तक भी
धर्म
गन्ने के ऊपर और नीचे का भाग चूसने योग्य नहीं होता है ( बचपन और बुढ़ापा ), पर यदि उसे खेत ( धर्म ) में रौंप
कर्म प्रकृति के 10 करण
बंध, उत्कर्षण, संक्रमण, अपकर्षण, उदीरणा, सत्त्व, उदय, उपशम ( उदय और उदीरणा नहीं ), निद्यत्ति, निकाचित । कर्मकांड़ गाथा : – 357
मृत्युभय
रामलीला में हनुमान का Role करने वाला बीमार हो गया। Director जल्दी जल्दी में एक हलवाई को Dialogue रटाकर 200 रू. में मना लाया ।
अबाधा काल
अबाधा काल स्थिति में ही शामिल होता है । श्री रतनलाल बैनाडा जी
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