Tag: मंजू

पाप / पुण्य

पाप और पाप क्रिया को छोड़ना, व्रत है ; पुण्य और पुण्य क्रिया को छोड़ना वैराग्य  । (मंजू)

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प्रभु-प्रीति

रहने दे मुझको यूँ उलझा हुआ सा तुझमें , सुना है… सुलझ जाने से धागे अलग-अलग हो जाते हैं । (मंजू)

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इम्तिहान

पता नहीं कैसे परखता है, मेरा ईश्वर मुझे..? इम्तिहां भी मुश्किल ही लेता है, और फेल भी होने नहीं देता..! (मंजू)

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बदलना

स्वयं को बदलना…कितना कठिन है… फिर दूसरे को बदलना…कैसे सरल हो सकता है ! (मंजू)

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परोपकार

फूंक मार कर दिये को बुझा सकते हैं.! किन्तु… अगरबत्ती को नहीं… क्योंकि जो ख़ुद को जलाकर दूसरों को सुगंध का अनुभव कराता हो, उसे

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सन्मान

सन्मान हमेशा समय का होता है, लेकिन आदमी उसे अपना समझ लेता है । (मंजू)

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सत्य

सत्य को ख्व़ाहिश होती है… कि… सब उसे पहचानें और झूठ को हमेशा डर लगता है… कि… कोई उसे पहचान न ले । मंजू

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बुरा समय

परिंदे शुक्रगुजार हैं, पतझड़ के भी दोस्तो.. तिनके कहां से लाते, अगर सदा बहार रहती..! (मंजू)

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पुण्य / पाप

“पुण्य” छप्पर फाड़ कर देता है… “पाप” थप्पड़ मार कर लेता है ! (मंजु)

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मंगल आशीष

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