Tag: धर्म

धर्म

जो धर्म को धारण करता है, वह उदाहरण बन जाता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म / चारित्र

चारित्र = कर्म बंध की क्रियाओं को छोड़ना (श्रावकों को अशुभ, श्रवणों को शुभ भी ), धर्म = जो जीव को इष्ट स्थान में धरता

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याद नहीं रहता

छोटे भाई ने बड़े भाई का लड्डु मुँह में डाला ही था कि बड़े ने उसका मुँह दबाकर लड्डु निकाल लिया । छोटा – जितनी

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धर्म में असफलता

धर्म में हमारी दाल क्यों नहीं गल रही ? क्योंकि हम अपनी दाल को गुनगुने पानी में पका रहे हैं । जरा सी गर्मी लगते

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धर्म / संसार

संसार (भव) सागर है, धर्म आक्सीजन सिलेण्डर, जिसके सहारे संसार में धंसे हुये भी निकल सकते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी

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श्रावक/मुनि धर्म

श्रावक धर्म मुख्यत: क्रियात्मक, मुनि धर्म मुख्यत: भावात्मक । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी

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पाप क्रियाओं के लिये धर्म

पाप क्रियाओं के लिये धर्म करने से सफलता तो मिलेगी पर उसका अंत-फल सही नहीं आयेगा, जैसे रावण का अंत-फल । मुनि श्री सुधासागर जी

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धर्म में धन

धन, धर्म-प्रभावना में आवश्यक, धर्म-साधना में बाधक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म

करने योग्य क्रियायें करना ही धर्म नहीं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, अकार्य को ना करना ।

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मंगल आशीष

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May 7, 2019

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