Category: अगला-कदम

प्रेम / रागादि

प्रेम जीव से, गुरु गुण देखकर। रागादि (द्वेष/ मोह) शरीर से होता है, क्षणिक। प्रेम की अधिकता होने पर द्रव्य-दृष्टि बनायें। द्वेष की अधिकता होने

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चेतना

शुद्ध कर्मफल चेतना तो एकेन्द्रिय की ही होती है। त्रस जीवों में कर्मचेतना तथा कर्मफल चेतना दोनों होती हैं परंतु अशुद्ध रूप में। ज्ञानचेतना सिद्ध

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गति/आयु बंध

आयुबंध की तुलना में गति-बंध का इतना महत्व नहीं क्योंकि आयु-बंध के साथ तथा बाद में भी वही गति-बंध होता रहता है जो आयु-बंध बंधी

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अष्ट कुमारियाँ

षट्कुमारियों का वर्णन तो मिलता है कि वे कुलाचल पर्वतों पर रहती हैं, पर अष्ट-कुमारियाँ ? ये 13वें द्वीप में रुचिकरवर पर्वत पर रहती है

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आयु जानना

आयु कितनी रह गयी, जानने के लिये 8 प्राणों (5 इंद्रियाँ, श्वासोच्छवास, कायबल, वचनबल) को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। मुनि श्री मंगल सागर

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गुण / अवगुण

द्रव्य की परिभाषा में गुण + पर्याय है। फिर हमको द्रव्यों में अवगुण कैसे दिखने लगते हैं!! डॉ. ब्र. नीलेश भैया

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आर्यिका माता जी

आर्यिका माता जी की प्रतिमा 11वीं नहीं, 11 के परे होती है। इसीलिए उनको उपचार से महाव्रती कहा जाता है। 11वीं प्रतिमा तो एलक, छुल्लकों

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मन

मन को कैसे समझें/ नियंत्रण में लें ? मन के विषय बाहरी (कषाय, इंद्रिय विषय) होते हैं, उनको समझें/ उनकी ख़ुराक कम कर दें ।

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क्या पुण्य हेय है ?

पुण्य सर्वथा हेय नहीं (श्रावकों के लिये उपादेय है),ना ही पुण्य का फल हेय है । बस ! पुण्य के फल का दुरुपयोग हेय है।

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देव आयुबंध

आत्मा से साधे (सरागसंयमी, संयमासंयम) –> विशिष्ट पर्याय वैमानिक देव, अगली पर्याय में भी संस्कार लेकर जाते हैं। मन से साधे –> अकाम निर्जरा, पुण्यार्जन।

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मंगल आशीष

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