Category: 2019
हेय / उपादेय
छूटने की अपेक्षा तो शुद्धोपयोग भी हेय है । पर सब हेय छोड़ने योग्य नहीं होते, क्योंकि शुद्धोपयोग केवलज्ञान में कारण है । ऐसे ही
अज्ञान
अज्ञान केवल दर्शनमोहनीय के कारण ही नहीं होता, बल्कि… चारित्र मोहनीय के कारण भी होता है, जैसे भरत चक्रवर्ती को । आचार्य श्री विद्यासागर जी
योग / ध्यान
ईर्यापथ-आश्रव में योग, ध्यान की अपेक्षा कहा है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
क्षयोपशम भाव
1 से 12 गुणस्थान तक । क्षयोपशम सम्यग्दर्शन के सद्भाव में, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की अपेक्षा – 4 से 7 गुणस्थान में । तीसरे गुणस्थान में
आयुकर्म
अप्रमत्त* के ही आयुकर्म की उदीरणा नहीं है बाकी सब (निचले गुणस्थान वाले) तो आयुकर्म का अपव्यय ही करते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
आहारक में प्राण/पर्याप्तियाँ
आहारक शरीर बनते समय 10 प्राण ही रहेंगे क्योंकि जब आहारक – शरीर नामकर्म का उदय होता तब औदारिक का उदय नहीं रहेगा । ऐसे
आत्मा का स्वरूप
इंद्रियातीत, अमूर्तिक आत्मा ही नहीं, आत्मा के गुण भी होते हैं । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
एकत्व
हर जीव का अपना-अपना केन्द्र, द्रव्य-रूप तथा पर्याय/गुण-रूप परिधि होती है । हर जीव अपने केंद्र पर एक पैर रखकर अपनी परिधि पर दूसरा पैर
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ घातिया कर्मों पर, उसमें भी विशेष रूप से मोहनीय पर काम करता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
निसर्गज़ / अधिगमज़
निसर्गज़/अधिगमज़ सम्यग्दर्शन में ही नहीं, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र में भी लगता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
Recent Comments