Category: 2017
व्यंजन/अर्थ
पर्याय के संधर्व में व्यंजन शब्द स्थूल के लिये उपयोग होता है । पर तत्वार्थ सूत्र – 1/18 में अवग्रह के साथ व्यंजन माने अस्पष्ट
पारिणामिक भाव
इनको परम-भाव भी कहते हैं, क्योंकि ये अन्य द्रव्यों से प्रभावित नहीं होते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
श्रेणी और व्रत
श्रेणी चढ़ते समय व्रतों का पालन तो होता नहीं (प्रवृत्ति नहीं) तो निर्जरा कैसे ? 1. श्रेणी में प्रवृत्ति नहीं, पर व्रत/नियम तो हैं जैसे
गज़स्नान / रई
जब तक बीच में रई रहेगी तब तक बंधन रहेगा ही । गज़स्नान और रई के उदाहरण में काल भेद का फ़र्क है ।
गुण / लक्षण
जो गुण प्रकट हो जाते हैं, उन्हें लक्षण कहते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
पारिणामिक भाव
भवत्वादि पारिणामिक भाव हैं, आत्मा के स्वभाव नहीं । क्योंकि 13वें गुणस्थान में भवत्व छूट जाता है । कुछ आचार्यों ने तो 14वें गुणस्थान में
तीर्थंकर प्रकृति उदय
सूर्योदय कमल के खिलने में कारण नहीं, बल्कि सूर्योदय से पहले की आभा कारण होती है । पहले तीन कल्याणक आदि तीर्थंकर प्रकृति के उदय
सम्यग्दर्शन/ज्ञान
सम्यग्दर्शन कारण रूप है, तथा सम्यग्ञान कार्य रूप । पुरूषार्थसिद्धिउपाय – गाथा – 33
आतप का बंध
पहले गुणस्थान में 16 कर्म प्रकृतियों की बंध व्युच्छत्ति होती है जिसमें सिर्फ आतप पुण्य प्रकृति है । कारण ? आतप सिर्फ 1 इंद्रिय को
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