Category: पहला कदम
आहारक/अनाहारक काल
आहारक काल –-> जघन्य = क्षुद्र जीव का काल(-)3 समय (विग्रह गति का)। अनाहारक काल –-> जघन्य = 1 समय उत्कृष्ट = 3 समय मुनि
योग
जीव… काययोग से शरीरगत वर्गणाओं को, वचनयोग से वचनगत वर्गणाओं को, मनोयोग से मनोगत वर्गणाओं को ग्रहण करता रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड:
रुचि
धर्म में रुचि –> सम्यग्दर्शन –> सम्यकचारित्र –> निर्जरा। पर धर्म पर विश्वास कैसे हो ? जैसे High Tension का बोर्ड देखते ही सावधानी बरतना
सक्रिय सम्यग्दर्शन
सिर्फ श्रद्धा नहीं, उसका अमल भी। ऐसा करने से सम्यग्दर्शन दोष रहित हो जाता है। इसे ही सम्यक्त्वाचरण भी कहते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
केवलज्ञान
केवलज्ञान सम्पूर्ण → ज्ञान के सारे शक्ति-अंश व्यक्त हो गये। केवलज्ञान समग्र → मोहनीय और वीर्यान्तराय कर्मों के क्षय से समग्र ज्ञान प्रकट हो जाता
निद्यत्ति / निकाचित
निद्यत्ति/ निकाचित कर्मों की तरह, निद्यत्ति/ निकाचित करण भी होते हैं। जिनबिम्ब दर्शन तथा आठवें गुणस्थान की विशुद्धि इन कर्मों को समाप्त करने में कारणभूत
वृद्धावस्था
आयुकर्म की उदीरणा(जो कमला बाई जी के अनुसार छठे गुणस्थान तक होती है), के चलते वृद्धावस्था में कमज़ोरी आती है। जो उदीरणा नहीं होने देते,
व्रत / शील
वैसे व्रत पहले होते हैं, शील बाद में पर कहने में “शील व्रत” कहा जाता है। व्रत और शील अलग-अलग भी लिये जाते हैं (सिर्फ
निर्दोष व्रत
निर्दोष व्रत पालन के लिये विकथाओं तथा कषायों से बचना होगा। क्योंकि उनमें Involve होने से व्रती अपने से दूर चला जाता है, फिर वापस
जीव
जीव जब तक 10 प्राणों से अतीत नहीं होता तब तक उसका एहसास नहीं होता जैसे पानी में मिठास का एहसास तभी होता है जब
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