Month: January 2010

आसन

खुरई में गुरू श्री से किसी ने पूछा कि क्या कुर्सी पर बैठकर जाप दे सकते हैं ? गुरू श्री – यदि पालती लगाने में

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148 कर्म प्रकृतियां

148 कर्म प्रकृतियों में से तिर्यंच, मनुष्य और देव आयु को छोड़ कर शेष 145 प्रकृतियों की तीव्र कषाय में स्थिति ज्यादा पड़ती है और

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मंद कषाय

देव, मनुष्य और तिर्यंच आयु, मंद कषाय से लंबी स्थिति वाली तथा अधिक अनुभाग वाली बंधती है । और घातिया तथा अघातिया की पाप प्रकृतियां

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दिगम्बर मुनि

शरीर से ‘यथाजात’ और आत्मा से ‘यथाख्यात’ दिगम्बर मुनि ही हो सकता है । आचार्य श्री गुप्तिनंदि जी

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आत्मतत्व

क्योंकि अपनी बात सबको अच्छी लगती है और आत्मा अपनी है, इसलिये आत्मतत्व की बात भी सबको अच्छी लगती है । पर विषय-भोगों और विकारों

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निगोद

भरत पुत्रों ने ऐसा कौन सा पुण्य किया होगा कि वे मनुष्य बन कर उसी भव से मोक्ष चले गये ? श्री कौन्देय जी के

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संस्थान

मनुष्य और तिर्यन्चों के पूरे 6 संस्थान होते हैं, देवों के समचतुरस्त्र तथा नारकी/वनस्पति/विकलेन्द्रिय के हुंड़क संस्थान होता है श्री रतनलाल बैनाडा जी

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मंगल आशीष

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January 20, 2010