Month: February 2010
माया
प्र.- राम भी तो हिरण के पीछे भागे थे, यदि हम जैसे साधारण आदमी भाग रहे हैं, तो इसमें बुराई क्या है ? उ.- राम
मिथ्याद्रष्टि
अनादि मिथ्याद्रष्टि के मोक्ष जाने का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । पं. रतनलाल बैनाडा जी
ज्ञान
हम सब अपने ज्ञान का अनादर करते हैं। जैसे हम सब जानते हैं कि झूठ बोलना पाप है, फिर भी बोलते हैं। मुनि श्री योगसागर
बंध
कार्मण वर्गणाओं का आत्मा के साथ एक मेव होना । लड़की देखने गये – आस्रव अंगूठी पहनाई – बंध इस तरह अलग-अलग दो क्रियायें होते
संत
जो सांप जैसा अनिश्चित विहार करे, जो सिंह जैसी वृत्ति करे, जिसमें बैल जैसी वफादारी हो, और जो वायु की तरह निष्कंप हो ।
आस्रव
कार्मण वर्गणाओं का कर्मरूप परिवर्तित होना । पं. रतनलाल बैनाडा जी
आपदा
मेरी द्रष्टि में आपदायें हैं, प्राकृतिक परीक्षायें! उनसे वही ड़रें जिनकी कच्ची हो शिक्षायें/आस्थायें ! मुनि श्री योगसागर जी
समय प्रबद्ध
एक समय में जितनी वर्गणायें कर्म रूप परिवर्तित हो । पं. रतनलाल बैनाडा जी
साधुता
कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना और कभी वह भी मना । मुनि श्री योगसागर जी
देवता
देवों के कपड़े, आभूषण, सुख और शरीर कैसा होता है ? देवों जैसा । पं. रतनलाल बैनाडा जी ( भगवान कैसे होते हैं ? भगवान
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