Month: February 2010
शक्ति
आज शक्ति इसलिये क्षीण हो रही है, क्योंकि आजकल ना तो विधि है और ना ही भाव हैं ।
स्थावर
कलकला पृथ्वी ( निगोद ) में पांचौं स्थावर पाये जाते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
विवेक
अंधे ने वैद्य से पूछा कि इस समूह में कितने साधू हैं और कितने असाधू ? वैद्य – आंख की दवा ले लो और खुद
दूरांतर-भव्य
दूरांतर-भव्य अनादि-अनंत निगोद में ही रहते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी ( मुख्तार जी के अनुसार भी )
धनतेरस
धनतेरस को जैन आगम में धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं । भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के
सिद्ध
सिद्ध कर्मभूमि के अलावा भोगभूमि से भी जाते हैं ऐसे ही पृथ्वी के अलावा जल और वायु से भी, मध्यलोक के अलावा ऊर्ध्वलोक और अधोलोक
धर्म
धर्म की पहचान, अधर्म पहचानने से होगी । अधर्म कम करते जाओ, जीवन में धर्म आता जायेगा । अधर्म किसके लिये ? शरीर के लिये
तैजस
तैजस दो प्रकार का होता है । निसरणात्मक :- जो शरीर के बाहर निकलता है, शुभ अथवा अशुभ । इस क्रिया को समुद्घात भी कहते
पुरुषार्थ
जो लोग ज्ञान को दूसरे के हाथ के चम्मच से लेते रहते हैं । अंत में उनके हाथ सिर्फ़ चम्मच ही रह जाता है ।
सैनी/असैनी
सैनी ही समता रख सकता है, असैनी के सिर्फ़ संज्ञायें होतीं हैं ।
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