Month: March 2010

चेतन

चेतन का भान होने पर, जड़ का महत्व कम हो जाता है ।

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मोह

मोह को छोड़ो, मोक्ष मिलेगा । करना क्या है ? ‘ह’ की जगह ‘क्ष’ लगाना है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अनंतानुबंधी कषाय

अनंतानुबंधी कषाय दुमुखी है – सम्यक्त्व व चारित्र दौनों को सांप की तरह दौनों मुँह से खाती है । मुनि श्री आर्जवसागर जी

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नाड़ी

लोक नाड़ी – 14 राजू ऊँची होती है । त्रस नाड़ी – 13 राजू – 60 योजन ( 3 वातवलय X 20 योजन) राजू |

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आचरण

कोई तुम्हें बातों के बीज दे, तुम उनके फूलों के पौधे बनाकर ( अपनी क्रिया से ) अपने जीवन को सजा लेना ।

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समता

मुर्दा ड़ूबता नहीं, ड़ूबता तो ज़िंदा ही है । क्योंकि मुर्दा के समता भाव है और ज़िंदा छटपटाता है, अहंकारी है और कर्ता की भावना

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मंगल आशीष

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March 26, 2010