Month: April 2010
विपरीत परिस्थिति
खट्टे दही ( विपरीत परिस्थिति ) के लगातार मंथन से भी नवनीत निकलता है ।
देवों में परिग्रह/अभिमान
देवों में ऊपर – ऊपर परिग्रह और अभिमान आदि कम क्यों हैं ? ऊपर – ऊपर देवों में कषाय मंद होने से संक्लेश कम, इससे
श्रोता
गप्पी दो घर बिगाड़ता है, श्रोता दो घर बनाता है । श्रोता अपना धर्म श्रवण कर उद्धार करता है और वक्ता को साता देता है
शरीर
शरीर एक प्रदेशी नहीं होता, क्योंकि जघन्य से अंगुल के असंख्यात प्रमाण होता है । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी
धर्म की राह पर प्रगति
धर्म की राह पर प्रगति करना चाहते हो ? यदि नहीं, तो बात खत्म । यदि हाँ, तो – Admit करें की आपमें कमजोरियाँ हैं
बलभद्र
सारे बलभद्र मोक्ष नहीं जाते । ( बलदेव स्वर्ग गये ) पं.रतनलाल बैनाडा जी
सुख
अति ( Excess ) के बिना इति ( Goal ) से साक्षात्कार करना संभव नहीं, पीड़ा की अति ही, पीड़ा की इति/End है, पीड़ा की
काय
प्रदेशों के समूह को काय कहते हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. श्री कैलाशचंद्र जी
रिश्ते/रास्ते
रिश्ते और रास्ते एक सिक्के के दो पहलू हैं, कभी रिश्ते निभाते निभाते रास्ते बदल जाते हैं, कभी रास्ते पर चलते चलते रिश्ते बन जाते
मोह
भगवान को और समवसरण को बड़े बड़े ज्ञानी/क्षायिक सम्यग्दर्शी क्यों छोड़ कर चले जाते हैं ? मोह की वजह से, मोह के संसार में बड़ा
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