Month: May 2010
साम्परायिक आश्रव
साम्परायिक आश्रव में 5 इंद्रिय, 4 कषाय, 5 अव्रत और 25 क्रियायें ली हैं । जब इंद्रिय ले लीं और उनके द्वारा ही कषाय, अव्रत
पशुता से देवत्व की ओर
हम सब चारों गतियां हर समय बांधते रहते हैं ,वे कर्म हमारी आत्मा से चिपकते रहते हैं । जब भी विपरीत परिस्थितियां उपलब्ध हों तब
कषाय
आत्मा को कषित अर्थात् घाततीं हैं क्योंकि दुर्गति में ले जातीं हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. कैलाशचंद्र जी
शुभ – अशुभ योग
शुभ योग ज्ञानावरण आदि पापकर्मों के बंध में भी कारण है । ‘शुभ पुण्यस्य’ अघातिया कर्मों की अपेक्षा कहा गया है यानि शुभ योग से,
मंज़िल
मैं जब से चला हूँ, मेरी मंज़िल पर नज़र है; आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ।
विश्वास
श्वांस की क्षमता देखें – फेफड़ों में वायु भरने पर यदि कार भी ऊपर से निकल जाये तो कुछ नुकसान नहीं होता । हवाईजहाज के
चारित्र मोहनीय
चारित्र मोहनीय के आश्रव के क्या कारण हैं ? कषाय के उदय से होने वाले तीव्र आत्म परिणाम ।
स्वार्थ/परमार्थ
अपने स्वार्थ से यदि परमार्थ की भी सिद्धि हो रही हो तो यह अच्छा ही है । जैसे सामुहिक स्वाध्याय तथा बच्चों को संस्कार देते
पुदगल का उपकार
सुख और जीवन तो पुदगल का उपकार है पर दु:ख और मरण उपकार कैसे हुये ? दु:ख और मरण, विरक्ति के कारण होने से, ज्ञानी
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