Month: May 2010

संसार

संसारी जीव संसार के चक्कर को चक्कर ना मान कर शक्कर मान रहा है । मीठे का आदी हो जाने के कारण यथार्थ को भी

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व्रती

व्रती 3 शल्य ( माया – मायाचारी, निदान, मिथ्यादर्शन ) रहित होता है ।

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पहनावा

गुरू श्री के पास एक सज्जन आए और पैर छूने लगे । गुरू श्री – यदि तुम लड़के हो तो पैर छूलो, यदि लड़की हो

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अलोकाकाश

अलोकाकाश में अवकाश स्वभाव नहीं देखा जाता जो आकाश द्रव्य का स्वभाव है ? अलोकाकाश में अवगाह पाने वालों का अभाव है, अलोकाकाश की अवकाश

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शांति

किसी ने पूछा – घर में बहुत अशांति रहती है, क्या करें ? आचार्य श्री – मन में शांति रखो ।

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पुदगल

पुदगल को संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी कहा है, पर अनंतानन्त क्यों नहीं कहा है ? अनंत का प्रमाण 3 प्रकार से है – परीतानन्त,

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कर्म

पूरी सावधानी के साथ झूले पर बैठा फिर भी जरा सी हलचल से झूला बहुत देर तक हिलता रहा । सावधानी के साथ किये गये

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जीव

जीव असंख्यात प्रदेश वाला होने पर भी, संकोच – विस्तार स्वभाव वाला होने के कारण, कर्म से प्राप्त छोटे बड़े शरीर में व्याप्त होकर रहता

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जीवोद्धार

जब जीविका चलने लगे, तब तो कम से कम जीवोद्धार की सोचो । श्री लालमणी भाई

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वायुकायिक जीव

सांस लेने में बादर या सूक्ष्म वायुकायिक जीवों का प्रयोग होता है ? सूक्ष्म जीव भी बादर वायुकायिक का प्रयोग करते हैं । बादर वायुकायिक

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मंगल आशीष

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May 6, 2010