Month: June 2010

पर

खुद के नंबर पर जब भी Dial करोगे, हमेशा Engage मिलेगा । दूसरों से मिलने में हम इतने मस्त हैं, इसीलिये अपनी लाईन हमेशा व्यस्त

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अपकर्ष काल

आखरी (9वां) अपकर्ष काल में भी उत्कर्षण/अपकर्षण होता है । इसलिये अंत समय में भाव संभालना बहुत महत्वपूर्ण है । बाई जी

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संहनन

अयोग केवली के संहनन नहीं होता । उनके नोकर्म रूप औदारिक शरीर का सत्व मात्र है । नारकियों, देवों, विग्रहगति, आहारक शरीर और एक इन्द्रिय

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गुरू

गुरू आदेश नहीं, निर्देश देते हैं । निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

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श्रुतकेवली/केवली

भगवान महावीर के काल में जीवंधर कुमार श्रुत-केवली अवस्था में थे । भगवान के निर्वाण के बाद केवली बने । जिज्ञासा समाधान पेज – 19

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अपराध

आत्मा की आराधना छोड़ना अपराध है, अपराध तभी होते हैं जब पंचेन्द्रियों के विषयों में लिप्तता अधिक हो जाती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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दर्शन/ज्ञान

दर्शन – अनाकार आलोकन : जैसे जन्म के समय बच्चे को होता है । ज्ञान – दर्शन के दो, तीन समय के बाद में, ——-अंगोपांग

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अन्तरतृप्ति

अन्तरतृप्ति लूटने से नहीं, लुटाने से होती है, अन्तरयामी से अन्तर मिटाने से होती है ।

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गुप्ति

गृहस्थ की मुक्ति इसलिये नहीं है, क्योंकि उसके गुप्ति नहीं है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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June 10, 2010