Month: July 2010

कर्तव्य

एक माँ दूसरे धर्मावलंबियों की Activities में जाने लगीं । उनके बेटे (मेहुल) ने दो – तीन दिन देखा फ़िर पूछा – अपना धर्म कब

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नित्य/ध्रौव्य

नित्य का अर्थ ध्रुव है । द्रव्यों का कभी विनाश नहीं होता –  यह नित्य है । अनादि पारिणामिक स्वभाव का उदय तथा व्यय नहीं

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निगोद-स्थान

सिर्फ राजवार्तिक में इसका कथन आता है कि सातवीं पॄथ्वी के नीचे एक राजू मोटाई में “कलकल पृथ्वी” है, जिसमें निगोदिया जीव रहते हैं (

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Success/Failure

Success is problem, but failure is formula. You can’t solve problem without knowing the formula. (Smt.Udaya)

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केवली

भगवान के केवलज्ञान होते समय शरीर परम औदारिक हो जाता है, तो क्या सारे निगोदिया जीव मर जाते हैं ? बारहवें गुणस्थान में पहुँचने पर

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समवाय

जिसके जुड़ने / मिलने पर कार्य की सिद्धी होती है, उसे समवाय कहते हैं । इसके पांच अंग हैं और कार्य की सिद्धी के लिये

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गुणस्थान

दु:खमा-दु:खमा, उत्सर्पिणी के दु:खमा तथा म्लेच्छ खंडों में हमेशा पहला गुणस्थान ही रहता है । भोगभूमियों में चौथा गुणस्थान तक होता है । यहां ॠद्धिधारी

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संसार

किसी भी बड़ी से बड़ी मशीन का छोटे से छोटा पुर्ज़ा भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना बड़ा पुर्ज़ा । हर पुर्ज़ा अपना role

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क्षायिक सम्यग्दर्शन की स्थिति

संसारी जीव के लिये –                                                                                                                                                                                                                                जघन्य स्थिति –  अन्तर्मुहूर्त होती है । उत्कॄष्ट स्थिति –  आठ वर्ष, एक अन्तर्मुहूर्त कम, दो पूर्व कोटी होती है ।

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मंगल आशीष

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July 16, 2010