Month: July 2010
जीवन
जीवन बांसुरी जैसा है, जिसमें बहुत से छेद (कमियाँ) हैं, अंदर से खोखली है (सार नहीं है) । यदि सही छेद को, सही समय पर
संसारी और संत
संसारी जीव जब संसार से जाता है “वसीयत” देकर जाता है । संत जब संसार से जाता है तो “नसीहत” देकर जाता है । (
निसर्गज-सम्यग्दर्शन
दर्शन-मोहनीय के उपशम, क्षयोपशम या क्षय से ही उत्पन्न होता है या बाह्य निमित्त भी कारण होते हैं ? पर उपदेश को छोड़कर बाह्य
भावलिंग/वेद
प्रश्न : भावलिंग और वेद में क्या अंतर है ? उत्तर : भावलिंग – नामकर्म के उदय से, वेद – चारित्र मोहनीय के उदय से
Desire
When you get little, you want more. When you get more, you desire even more. But when you lose it, you realise “little” was enough.
श्रुतज्ञान
मतिज्ञान का Analysis श्रुतज्ञान है । श्रुतज्ञान के दो भेद होते हैं- शब्दज – अंग तथा अंग बाह्य , लिंगज – आकार/बाह्यरुप। पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
कर्मफल
कर्म तो लगातार फलित होते ही रहते हैं , यदि आत्मा को जाग्रत रखें तो वे कर्म बिना फल दिये ही झर जायेंगे ।
Love
If you can’t love a person whom you see, then how can you love GOD whom you have never seen. Mother Teresa
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