Month: August 2010
धर्म
धर्म प्राणवायु है, हमारे जीवन के लिये Oxygen है, जो दिखती नहीं है, पर खाना, पानी, माँ आदि से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है | चिंतन
सातिशय-पुण्य
सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान का फल चारित्र है । सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान सरागावस्था में अकषाय भाव से सातिशय पुण्य का बंध करता है । यह
केवली-समुदघात में समय
अधिकतर आचार्यों ने 8 समय बताया है ( 4 समय का विस्तार + 4 समय संकुचन )। पर कुछ आचार्यों ने 7 समय भी बताया
स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता का भाव रखते रखते स्थाई स्वतंत्रता “मोक्ष” पायें । चिंतन
केवली-समुदघात में समय
अधिकतर आचार्यों ने 8 समय बताया है ( 4 समय का विस्तार + 4 समय संकुचन )। पर कुछ आचार्यों ने 7 समय भी बताया
अच्छा/बुरा
बहुत अच्छे तथा बहुत बुरे में भी कई समानताऐं होती हैं । जैसे बहुत कम प्रकाश में दिखता नहीं है, बहुत ज्यादा प्रकाश में भी
द्वितियोपशम
प्रश्न :- द्वितियोपशम कितनी प्रकृतियों के उपशम से होता है ? उत्तर :- 7 प्रकृतियों के उपशम से । क्योंकि द्वितियोपशम-सम्यग्दर्शन, क्षयोपशमिक-सम्यग्दर्शन से ही होता
Mistake
See a mistake as just a mistake, not “my” or “his” mistake. “My” brings guilt, “HIS” brings anger, only “MISTAKE” brings realization & likely improvement……. (Mr.
प्रथमोपशम-सम्यग्दर्शन
5,6 या 7 प्रकृतियों के उपशम से होता है । 6 प्रकृतियों का उपशम – जीव के 1 बार मिथ्यात्व में आने पर यदि सम्यक-प्रकृति
सत्संग
एक आदमी सत्संग से हमेशा दूर भागता था, गुरू को आगे आगे के समय देता रहता था । एक दिन वह मर गया, गुरु शमशान
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