Month: September 2011
संघर्ष
संघर्षमय जीवन का उपसंहार हर्षमय होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
संगति
साधु संगति की महिमा दूध पानी जैसी है, पानी दूध के साथ मिलकर दूध के भाव ही बिकने लगता है । मुनि श्री कुन्थुसागर जी (पर
दान
दान से हमारे खाते में पुण्य नहीं पहुँच पाता, मात्र कुछ पाप धुल पाते हैं । क्योंकि पुरूष ढेरों पाप करते हैं, धन कमाने में,
ध्यान
ध्यान कहीं भी, किसी समय भी, किसी जगह पर भी । आचार्य श्री वीरसेन जी
सम्यक्चारित्र
सम्यक्चारित्र को ही धर्म कहा है । पर यह सम्यक्चारित्र, सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान के साथ होना चाहिये ।
भ्रम
एक शेर पेड़ के ऊपर बैठे बंदर को कैसे खा जाता है ? शेर ने बंदर की परछांयी पर दहाड मार कर हाथ मारा तो
मोह
एक शराबी नदी के किनारे बैठा था । वहीं एक राजा की सेना ने पड़ाव ड़ाला – हाथी, घोड़े आदि । शराबी बहुत खुश हुआ
वैय्यावृत्य
समाधि की प्राप्ति, विचिकित्सा का निवारण और वात्सल्य की अभिव्यक्ति के लिये वैय्यावृत्य की जाती है । तत्वार्थ सूत्र
घर
विदेश में बहुत दिन रह आओ, तो क्या वह आपका घर कहलायेगा ? संसार में कितने दिन भी भटक लो, पर उसे घर मत मानने
क्षमा
क्षमा में माँ शब्द छुपा है, माँ में ममता छुपी है, ममता में दया है, दया में क्षमा, आप सबसे उत्तम क्षमा । श्री प्रमोद शाह
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