Month: February 2012

दर्पण

दर्पण निहारना – माने हारना । (अशाश्वत/नश्वर शरीर के हाथों, शाश्वत/नित्य आत्मा की अस्वीकृति) आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

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माता पिता

जो बुढ़ापे में बसों में धक्के खा खा कर अपने बच्चों के लिये पैसे बचाते हैं, ताकि उनके बच्चे टैक्सी में चल सकें । चिंतन

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Motivation

Motivation is not a product of external influence ; It is a natural product of our desire to achieve something and our belief that we

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भगवान के दर्शन

भगवान के दर्शन करने नहीं, भगवान में अपने दर्शन करने के लिये जाना चाहिये । औषधि इसलिये ली जाती है ताकि आगे औषधि ना खानी

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प्रवृत्ति

मच्छर जब तक खून चूसता रहता है तब तक शांत रहता है, जैसे ही उसे खून देना बंद करते हैं, वो भिनभिनाने लगता है/नाराज हो

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Beauty

We always worry about our looks… But the truth is that they neither matter to those who love us nor to those who don’t love

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सत्य

लहर नई हो सकती है,लहर पुरानी भी हो सकती है, परन्तु सागर न तो नया है ना पुराना। बादल नये हो सकते है, पुराने भी

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ज्ञान/वैराग्य

ज्ञान तुम्हारे जीवन की दिशा निर्धारित करता है और वैराग्य जीवन की दशा को परिवर्तित करता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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उधारी

किसी की भी उधारी लेकर मर जाना, पर भगवान की उधारी लेकर मत जाना क्योंकि भगवान तो किसी की उधारी अपने पास रखते नहीं हैं,

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चिंतन

नीचे स्तर का चिंतन तो चिंता है, अवनति का कारण है । आचार्य श्री विशुद्धसागर जी

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मंगल आशीष

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