Month: April 2013

धर्मी/अधर्मी

धर्मी – जो धर्म का प्रयोग अपने पर करता है । अधर्मी – जो धर्म का प्रयोग दूसरों पर ही करता है । धर्मात्मा = धर्म

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लगाव

हमारे तो लगावों के तारों में भी गांठें हैं, वे गांठे कब खुल जायेंगी, इसका भय बना रहता है , तभी तो हम अपने बेटे/पत्नी

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Hunger

The world’s hunger is getting ridiculous. There is more fruit in a rich man’s shampoo than on a poor man’s plate. (Mrs. Shuchi Jain)

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क्रोध

जब भी क्रोध आये, अपनी फोटो पर लाईन खींच दो । थोड़े समय बाद पता चल जायेगा कि यदि क्रोध करते रहे तो आगे चलकर

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तप

घी और रूई मंगल नहीं हैं, पर जब दीपक  में जलने लगती हैं, तो मंगल बन जाती हैं । तप का यही महत्व है । मुनि

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मोह/पुरूषार्थ

मोह – घरवालों/प्रियजनों से, पुरूषार्थ – मोह कम करने का प्रयास । श्री लालमणी भाई

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उधारी

सबसे ज्यादा उधारी बच्चों की माँ पर या माँ की बच्चों पर होती है, तभी तो सबसे ज्यादा कष्ट सहकर उन्हें संसार में लाती है

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Life

We need everything ‘permanent’ in our ‘temporary’ life. (Dr. Sudheer)

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मंगल आशीष

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April 22, 2013