Month: April 2013

प्रगति

यदि प्रगति कर रहे हो तो किंचित दिखना तो चाहिये । यदि बर्फ खाने जा रहे हो / बर्फ के करीब जा रहे हो तो शीतलता तो

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भक्ति

‘भ’ – भावना ‘ई’ – ईश्वर ‘त’ – तारतम्यता भावना पूर्वक ईश्वर से तारतम्यता

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Success

Success is the sum of small efforts, repeated day in and day out. (Mr. Sanjay)

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भोजन की अपवित्रता

किसी अपवित्र वस्तु के संपर्क में आकर पवित्र वस्तु भी अपवित्र हो जाती है । अपवित्र भोजन लेने वालों के अंदर का धर्म भी अपवित्र

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भावकर्म

भावकर्म, भावाश्रव, भावबंध सब चेतन हैं । कषाय आदि आत्मा के भाव चेतन ही हुये न ! पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

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पुण्य

चित्त की प्रसन्नता/पवित्रता ही पुण्य है । आचार्य श्री विभवसागर जी

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श्रद्धा

अर्जुन को साक्षात गुरू सिखा रहे थे, एकलव्य मूर्ति में मूर्तिमान से शिक्षा लेकर अर्जुन से आगे निकल गये । श्री रत्नत्रय – 3

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गौरव/गुण

गौरव पद/गुणों का होता है, गर्व वस्तु/शरीर का होता है । गौरव दूसरों के द्वारा दिया जाता है, गर्व ख़ुद किया जाता है। गौरव गुण

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Self confidence

“The history of the world is the history of a few people who had faith in themselves.” – Swami Vivekanand

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मंगल आशीष

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April 13, 2013