Month: May 2013

मतिज्ञान

इसको प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष परोक्ष क्यों कहा है ? जितने अंग को प्रत्यक्ष जाना सो “प्रत्यक्ष”, शेष अंग अप्रत्यक्ष, इंद्रियावलम्बी होने से “परोक्ष” । श्री जैनेन्द्रसिद्धांत कोश

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सादगी

मि. फोर्ड़ (प्रसिद्ध कार कंपनी के मालिक) अमेरिका में बड़े सादगी से रहते थे, कपड़े भी बहुत सामान्य से पहनते थे, उनका दोस्त हमेशा उन्हें

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गुरू

शिष्य को गुरू कुछ देते नहीं हैं, सिर्फ पहचानने की कला बता देते हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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पहचान

एक भक्त ने भगवान से कहा – मैं आपसे मिलना चाहता हूँ । भगवान – जब चाहो मिल लो, मेरे दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं

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Nimitta

My pain be the reason for somebody’s laugh. But my laugh must never be the reason for somebody’s pain. – Aacharya Vishudh Sagar Ji

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द्र्व्यों में उत्पाद-व्यय

सभी द्र्व्यों में अगुरुलघु गुण की अपेक्षा स्वनिमित्तक उत्पाद-व्यय होता है । पर प्रत्यय की अपेक्षा भी धर्म आदि द्र्व्यों में होता है (जीव पुदगलों

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सहायता

किसी की सहायता करते समय सोचो – “यह उसका आखिरी दिन है” ताकि अधिक से अधिक और मन से कर सको । सहायता करने के

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धर्म

धर्म जीवन नहीं देता है, जीने की कला देता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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May 31, 2013