Month: July 2013
अनुकम्पा/मोह
अनुकम्पा आद्रता है, मोह कीचड़, जो अपने ही घर में होती है । चिंतन
Art of conversation
Art of conversation is not only to say the right thing at the right time; But also to leave the wrong thing unsaid, at the
अप्रमत्त गुणस्थान
स्वस्थान अप्रमत्त – प्रमाद रहित, कषायों का अनुपशामक व अक्षपक होते हुये भी ध्यान में लीन । सातिशय अप्रमत्त – श्रेणी चढ़ने के सम्मुख खड़ा
व्यक्ति/व्यक्तित्व
व्यक्ति और व्यक्तित्व में उतना ही अंतर है, जितना जमीन और आसमान में । आचार्य श्री विद्यासागर जी
आत्मकल्याण
आत्मकल्याण से पहले जरूरी है – जीवकल्याण तथा संस्कृति कल्याण । आचार्य श्री विनिश्चयसागर जी
Hard Work
Sun rise everywhere but crop grows only where the farmer has worked hard. God is everywhere but his Grace is only for one who works
आत्मविश्वास
ज़िंदगी तो अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो जनाज़ा जाता है । श्री नवजोतसिंह सिद्दू
आकुल/व्याकुल
आकुलता (मन की बेचैनी) ही दु:ख है । आकुलता की तीव्रता ,व्याकुलता (तन की बेचैनी) है (जब सांसें भी तेज चलने लगतीं हैं) और यह
Memory
Generally, we believe our memory is weak.. But when we want to forget someone’s mistake, we realize how powerful our memory is…! ((Mr. Sanjay)
खुशी
दूसरों को खुश रखने के चक्कर में हम अपनी खुशियाँ बर्बाद कर रहे हैं । आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
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