Month: April 2015
सुधार
April 4, 2015
दुनिया को सुधारना बहुत आसान है, शर्त एक ही है कि इस सुधार की शुरुआत खुद अपने से हो। (मंजू)
भाग्य
April 3, 2015
टूटी कलम और गैरों से जलन, हमें खुद का भाग्य नहीं लिखने देतीं। (हिना) (जलन स्याही को सुखा देती है)
ज्ञान
April 2, 2015
अंधकार में दिखायी नहीं देता, तीव्र प्रकाश में भी नहीं । अज्ञानी भटकता है, अतिज्ञानी भी (घमंड़ से) । चिंतन
परिणमन
April 2, 2015
रस रक्तादि धातुओं का परिणमन क्रम से और ज्ञानावरणादि कर्मों का युगपद होता है । कर्मकांड़ – 16
बचना/डरना/सहना
April 1, 2015
विपरीत परिस्थितियों से डरो मत, पर बचो, सिर पर आ ही जाये तो सहो (समतापूर्वक) । चिंतन
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