Month: September 2015

गुरू

जहाँ नदी का पानी (भगवान की वाणी) नहीं पहुँच पाता, वहाँ गुरू रूपी नहर/पाइप से पानी पहुँचाया जाता है । मुनि श्री निर्वेगसागर जी

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धर्मात्मा

जो संसारी वस्तुओं का त्यागी हो, वह धर्मात्मा हो भी सकता और ना भी हो, पर जिसने संसारी व्यक्तियों को स्वीकार कर लिया हो, वह

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भगवान में आत्मा

14वे गुणस्थान तथा सिद्धों की आत्मा, पूर्व शरीर से कुछ कम, क्योंकि नामकर्म का उदय 13वे गुणस्थान तक ही होता है । पाठशाला

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आँसू

जो दूसरों की आँखों को आँसू देते हैं, वे क्यों भूल जाते हैं कि उनके पास भी दो आँखें हैं। (अरविंद)

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मंगल आशीष

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