Month: October 2015
कर्म बंध
कहते हैं – कर्म कर्म को खींचते हैं । पर चौदहवें गुणस्थान में तो कर्म सत्ता में हैं, पर आश्रव नहीं ? कारण – योग/निमित्त
अच्छाई / बुराई
मैंने महसूस किया है उस जलते हुए रावण का दुःख , जो सामने खड़ी भीड़ से बार बार पूछ रहा था….. “तुम में से कोई
तुच्छ बातें
जीवन में बड़ा बनना है तो छोटी-छोटी बातों पर अटकना नहीं । राजधानी छोटे-छोटे स्टेशनों पर रुकती नहीं । (अपूर्व श्री)
मार्ग
संसार का रास्ता रेत के टीले पर से जाता है, पैर रखना आसान लेकिन पैर धसते जाते हैं | हवाओं के रुख के साथ शिखर(मंज़िल)
संघर्ष
जंगल में हर रोज सुबह होने पर हिरण सोचता है कि मुझे शेर से ज्यादा तेज भागना है, नहीं तो शेर मुझे मार के खा
रिश्ता
रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा भी रखना; जो सीख भले ही कड़वी देता हो पर….तकलीफ में मरहम भी बनता है….
संसार व लोक भावना
संसार भावना – भावनात्मक, चार गति, रागद्वेष, लोक भावना – क्षेत्रात्मक , छ: द्रव्यों के बारे में ।
विघ्न
पहले धुआं उठता है, फ़िर ज्योति जलती है । हर अच्छे कार्य में विघ्न तो आते ही हैं ।
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