Month: August 2016
सुख / दु:ख
पराश्रित सुख से उत्तम स्वाश्रित दुःख है, तभी तो साधु विषय-सुखों का त्याग करके तप के दुःख को अंगीकार करके सुखी रहते हैं। क्षु.श्री ध्यान
पर्यावरण
मेरी चिता सजाने के लिए, इन पेड़ों को मत काटो…. यदि अगला जन्म पक्षियों का मिला, तो घोंसला कहाँ बनाऊँगा । (धर्मेंद्र)
ज्ञान चेतना
11, 12 गुणस्थान में मोह/कषाय नहीं है, तब भी ज्ञान चेतना नहीं, क्योंकि ज्ञानावरण हटा नहीं । 13, 14 गुणस्थान में ज्ञान पूरा पर चेतना
आचरण
स्वर्ण कितना भी मूल्यवान क्यों ना हो, किन्तु सुगंधि पुष्प से ही आती है । हालाँकि श्रृंगार के लिये दोनों का ही महत्त्व है । इसी
मानव
कितना अजीब है ना… 84 लाख योनियों में एक मानव ही धन कमाता है, पर अन्य कोई जीव कभी भूखा नहीं मरा, और मानव का
Oneness
The oneness of human beings is the basic ethical thread that holds us together. (धर्म के क्षेत्र में इसे “एकत्व भाव” कहते हैं, जो मोक्ष
मन
“मन” बड़ा चमत्कारी है, …. इसके …… आगे “न” लगाने पर वह “नमन” हो जाता है, और पीछे “न” लगाने पर “मनन” हो जाता है
अपने / पराये
Hello.. Sir, Calling from Old Age Home… We saw Your Advertisement of Missing Dog. It has come here and is playing with Your “Mother” !!
मैं
अयोध्या से वापस आने पर माँ कौशल्या ने पूछा… “रावण” को मार दिया ? भगवन श्रीराम ने सुन्दर जवाब दिया… महाज्ञानी, महाप्रतापी, महाबलशाली, प्रखंड पंडित,
हिंसा
हिंसा में यदि किसी को भलाई दिखती भी है तो वह अस्थायी ही होगी, पर बुरायी, हमेशा स्थायी होती है । महात्मा गाँधी
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